कवयित्री: डॉ. पुष्पा खण्डूरी
 
        किसी का आना
किसी का आना भी,
किसी की विदाई का सबब बन जाता है ।
बचपन का जाना भी ,
तो जिन्दगी में शबाब लाता है ।
किसी का आना भी तो,
किसी की विदाई का सबब बन जाता है।
यौवन भी हमेशा ही कहाँ,
महफूज़ रहता है।
जिन्दगी की ज़िम्मेदारियाँ,
भी तो निभानी होती है।
एक का आना,
दूजे की विदाई का सबब बन जाता है।
जिन्दगी की मुश्किलें भी,
अनुभवों की सौगातें, लाती हैं।
जिन्दगी का ये अनुभव भी,
न जाने कब, कहाँ, खो जाता है ?
झुर्रियों में बुढ़ापे की,
तन्हाई बयां कर जाता है ।
एक का आना,
दूजे की विदाई का सबब बन जाता है।
सबेरे का ये सूरज सलोना,
दुपहरी में गज़ब सा ढाता है ।
ढ़लता हुआ सूरज हमेशा ,
चाँद को, आसमां दे जाता है ।
एक का आना,
दूजे की विदाई का सबब बन जाता है।
एक का आना दूजे की विदाई
बन जाता है ।
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून उत्तराखंड।

 
                         
                 
                 
                 
                 
                 
                