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न्यायालयों के लगभग 5.23 करोड़ आदेश/निर्णय अपलोड है , जिसमें से मात्र 2.18 करोड़ आदेश/निर्णय डाउनलोड किए गए। - Separato Spot Witness Times
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न्यायालयों के लगभग 5.23 करोड़ आदेश/निर्णय अपलोड है , जिसमें से मात्र 2.18 करोड़ आदेश/निर्णय डाउनलोड किए गए।

देहरादून 13 अप्रैल 2025,

राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल द्वारा आयोजित ‘नॉर्थ जोन रीजनल’ कॉन्फ्रेन्स के समापन दिवस पर होटल हयात सेन्ट्रिक, राजपुर रोड, देहरादून में उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश तथा जिला न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

इस अवसर पर, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल द्वारा ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के संबंध में बताया गया कि, उक्त प्रोजेक्ट न्यायालयों में चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है तथा कई मामले जैसे ऑनलाइन ट्रैफिक चालानों का वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से शीघ्र निपटारा किया जा रहा है। न्यायमूर्ति ने बताया गया कि वर्तमान में न्यायालयों के लगभग 5.23 करोड़ आदेश/निर्णय अपलोड है , जिसमें से मात्र 2.18 करोड़ आदेश/निर्णय डाउनलोड किए गए है, जिससे पता चलता है कि, वादकारियों में अभी भी जागरूकता की कमी है। इस संबंध में इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने की जरूरत पर भी न्यायमूर्ति ने जोर डाला।

न्यायमूर्ति एमo सुंदर द्वारा कहा गया कि वर्तमान में डेटा को सुरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती है तथा डेटा के किन्ही परिस्थितियों में कोलैप्स होने की स्थिति में विकल्प के सम्बन्ध में भी विचार करना आवश्यक है।

इस संबंध में उनके द्वारा बताया गया कि हमें डेटा को एक से अधिक सर्वर में सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। इस मौक़े पर उन्होंने ई – सेवा के सराहनीय कार्य की प्रशंसा भी की । उनके द्वारा कुछ विधिक अनुवाद करने वाले सॉफ्टवेयर के बारे में भी जानकारी दी गई।

न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा द्वारा ई सर्विस की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा गया कि जब भी सिस्टम में कोई बदलाव होता है तो मानव प्रकृति यही है कि उसे स्वीकार करने में समय लगता है। उनके द्वारा त्वरित न्याय और सशक्त न्याय के संबंध में भी विस्तार से जानकारी दी गई।

न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा व एमo सुंदर द्वारा वर्तमान में निर्णय /आदेश आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से तैयार करने के संबंध में तथा वर्तमान टेक्नोलॉजी के बारे में अपने विचार रखें गए तथा इस संबंध में भी प्रकाश डाला गया कि न्यायालयों द्वारा आदेश तैयार करने में किस सीमा तक एoआईo की सहायता ली जा सकती है तथा इसमें किन किन चुनौतियों का सामना करना होगा तथा विधिक रूप से होने वाली किसी हानि के लिए कौन जिम्मेदार होगा।वर्तमान में होने वाले ऑनलाइन हिंसा/दुर्व्यवहार का निपटारा किस प्रकार से किया जाना चाहिए, इस संबंध में भी विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई।

अंत में उच्च न्यायालय उत्तराखंड के न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी द्वारा कॉन्फ्रेंस में प्रतिभाग करने वाले उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति तथा जिला न्यायाीलयों के सम्मानित न्यायाधीश का धन्यवाद ज्ञापित किया। तथा प्रतिभागीगण के फीडबैक के साथ कॉन्फ्रेंस का समापन किया गया।

 

 

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