सुप्रीम कोर्ट: करीब 30 साल पहले 1994 में नौकर ओमप्रकाश ने उत्तराखंड के देहरादून में रिटायर्ड कर्नल, उसके बेटे और बहन का बेरहमी से कत्ल कर दिया था। निचली अदालत ने आरोपी को फांसी की सजा सुनाई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट तक ने मुहर लगाई।राष्ट्रपति के पास दया याचिका पहुंची और उन्होंने फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी थी। लेकिन 25 साल जेल की सजा काटने के बाद अदालत के संज्ञान में लाया गया कि, अपराध के समय हत्यारा नाबालिग था। उसकी उम्र सिर्फ 14 साल थी। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मुताबिक, उसे अधिकतम तीन साल की सजा ही हो सकती थी।
दिल दहलाने वाला यह मामला 30 साल पहले देहरादून से जुड़ा है। 1994 में नौकर ओमप्रकाश ने उत्तराखंड के देहरादून में रिटायर्ड कर्नल, उसके बेटे और बहन का बेरहमी से कत्ल कर दिया था। हत्यारा ओमप्रकाश कर्नल साहब के घर पर घरेलू नौकर का काम करता था। वह घरवालों से बदतमीजी करता था और पैसे भी चोरी करता था। उसकी इन बुरी आदतों से परेशान होकर कर्नल साहब के परिवार ने उसे नौकरी से निकालने का फैसला लिया। जैसे ही ये बात ओमप्रकाश को पता चली, वो हिंसक हो गया। उसने मौका पाकर कर्नल, उसके बेटे, उनकी बहन की धारदार हथियार से हत्या कर दी। ओमप्रकाश ने रिटायर्ड कर्नल की पत्नी पर भी जानलेवा हमला करने की कोशिश की, लेकिन किसी तरह वो जान बचाने में कामयाब रहीं। घटना के बाद वह फरार हो गया। पांच साल बाद 1999 में ओमप्रकाश को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से गिरफ्तार किया गया।
2001 में निचली अदालत ने ओमप्रकाश को फांसी की सजा सुनाई। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने भी अपराध की जघन्यता को देखते उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा। दोषी ने निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में अपने नाबालिग होने की दलील दी थी, लेकिन घटना के समय उसका बैंक अकाउंट उसके खिलाफ पुख्ता सबूत माना गया। इसके मद्देनजर हर अदालत ने माना कि वो घटना के वक्त बालिग था। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में उसकी रिव्यू और क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो गई।
ओमप्रकाश ने राष्ट्रपति के सामने मर्सी अपील दाखिल की। जिसपर राष्ट्रपति ने 2012 में उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला। साथ ही यह शर्त रखा कि जब तक वह 60 साल की उम्र नहीं पूरी कर लेता, तब तक उसकी रिहाई नहीं होगी।
ओमप्रकाश ने अपने नाबालिग होने संबंधी दस्तावेजों के साथ हाई कोर्ट में फिर याचिका दायर की। उसने हड्डी की जांच रिपोर्ट और स्कूली रिकॉर्ड से जुड़े सबूत कोर्ट के सामने रखे, जिसमें घटना के वक्त उसके नाबालिग होने की पुष्टि होती थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने यह कहते हुए इस अर्जी पर कोई राहत देने से इनकार कर दिया कि एक बार राष्ट्रपति की ओर से मामले का निपटारा हो जाने पर केस को दोबारा नहीं खोला जा सकता। ऐसे में कोर्ट इस मामले में राष्ट्रपति के आदेश की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इस राय को नहीं माना। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अगर मुकदमे में किसी भी स्तर पर आरोपी के नाबालिग होने के सबूत मिलते हैं तो अदालत को उसके मुताबिक कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
After serving a year’s sentence in a triple murder case that took place about 30 years ago in Dehradun, the Supreme Court released the accused under Juvenile Justice.
देहरादून में करीब 30 साल पहले हुए ट्रिपल मर्डर केस में साल सजा काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को जुवेनाइल जस्टिस के तहत रिहा किया।