दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को तथाकथित शराब घोटाला मुकदमे में जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। सिसोदिया 17 महीने से न्यायिक हिरासत में हैं। उनकी जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा था। आज सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 10 लाख रुपए के बेल बॉन्ड सहित अन्य शर्तों के साथ जमानत दे दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत पर रिहा किए का ट्रायल में देरी को मुख्य आधार बताया। सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय तक प्री-ट्रायल हिरासत को गंभीरता से लिया और कहा कि जमानत एक नियम है, जबकि जेल एक अपवाद है। अपीलकर्ता को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजना उसके साथ सांप-सीढ़ी का खेल खेलने जैसा होगा। किसी व्यक्ति को एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मनीष सिसोदिया ने सीबीआई मामले में 13 और ईडी मामले में निचली अदालत में 14 अर्जियां दाखिल की थीं। उनको लंबे समय से जेल में रखा गया। बिना सजा के किसी को इतने लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय कानून के एक बहुत ही स्थापित सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के रूप में जमानत को रोका नहीं जाना चाहिए। अपीलकर्ता को असीमित समय के लिए सलाखों के पीछे रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 17 महीने लंबी कैद और मुकदमा शुरू नहीं होने की वजह से सिसोदिया को सुनवाई के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। वर्तमान मामले में, ईडी मामले के साथ-साथ सीबीआई मामले में 493 गवाहों के नाम दिए गए हैं। इस मामले में हजारों पृष्ठों के दस्तावेज़ और एक लाख से अधिक पृष्ठों के डिजिटल दस्तावेज़ शामिल हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निकट भविष्य में मुकदमे के समापन की दूर-दूर तक संभावना नहीं है।
निचली अदालत ने राइट टू स्पीडी ट्रॉयल को अनदेखा किया या और मेरिट के आधार पर जमानत रद्द नहीं की थी। मनीष की समाज में गहरी जड़ें हैं। उसके भागने की कोई सम्भावना नहीं है। जहां तक गवाहों को प्रभावित करने की चिंता है।अपीलकर्ता पर कड़ी शर्तें लगाकर उक्त चिंता का समाधान किया जा सकता है।
Former Deputy Chief Minister of Delhi Manish Sisodia got bail from the Supreme Court: He has been in judicial custody for 17 months.