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हरदा ने इन दो मुकदमो पर उठा दिए सवाल - Separato Spot Witness Times
राजनीतिक राज्य समाचार

हरदा ने इन दो मुकदमो पर उठा दिए सवाल

 

मेरे चिंतनशील मन को दो मुकदमे या नोटिसेज, जो कुछ भी हैं वह बहुत चिंतित कर रहे हैं। इन दोनों प्रकरणों में सत्ता केंद्रों में आ रही तानाशाही की बू आती है, एक मामला गजेंद्र सिंह रावत जो अपनी निरंतर पोस्ट लिखते हैं उन पर दर्ज किये जा रहे मुकदमे का है, जिसको सत्ता प्रतिष्ठान के एक हिस्से के प्रवक्ता द्वारा धार्मिक विद्वेष पैदा करने की आड़ में दायर किया गया।

 

केदारनाथ मंदिर या बद्रीनाथ मंदिर में किसी भी प्रकार का निर्माण और वह भी यदि सोना लगाया जा रहा हो तो उस पर सबकी निगाह रहेगी, जितना घोषित हुआ उसका एक छोटा अंश भी वहां नहीं मड़ा गया। सवाल लंबे समय तक न केवल चर्चा में रहा, वाद-विवाद में भी रहा, राजनीतिक पार्टियों ने भी मुद्दे को उठाया, मगर कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया और यह ऐसा प्रश्न है जो हर साल चारधाम यात्रा के प्रारंभ होते ही उठेगा, जब तक इसका कोई तार्किक उत्तर सत्ता प्रतिष्ठान की तरफ से नहीं आता है तो गजेंद्र भाई के अंदर बैठा हुआ पत्रकार यदि इस प्रश्न को उठाता है तो क्या उनके ऊपर मुकदमा होना चाहिए? गजेन्द्र भाई या एडवोकेट विकेश नेगी, यह ऐसे लोग हैं जो चुप बैठने वाले नहीं हैं। विकेश नेगी ने आरटीआई का सहारा लेकर कुछ बड़े लोगों से जुड़े हुए मामलों का खुलासा किया, उनके खुलासे समाचार पत्रों की सुर्खी भी बने। यदि आप सार्वजनिक जीवन में हैं और बड़े पद में हैं या रहे हैं तो आपके कर्म की स्कूटनी कभी भी हो सकती है, आपकी संपत्ति का एक्सरे कभी भी किया जा सकता है,

 

आरटीआई के अधिकार आमजन को अधिकारिता देता है और उसका उपयोग कर विकेश नेगी कहां गलती की है? क्या यदि कल हरीश रावत की किसी इल गोटन प्रॉपर्टी का जिसे मैं बहुत छुपा करके रखा हुआ हूं उसका खुलासा किसी आरटीआई के माध्यम से होता है तो क्या इससे आम आदमी में भय पैदा हो जाएगा या इससे गलत तरीके से संपदा अर्जन करने वालों में भय पैदा होगा? कहा जा रहा है कि एडवोकेट विकेश नेगी पब्लिक ऑर्डर के लिए खतरा बन गया है, इसलिए उनका जिला बदर भी हो सकता है!! आरटीआई एक ऐसा अधिकार है जिसने आमजन को बड़ी शक्ति दी है और उस शक्ति का संरक्षण देने के लिए न्यायालय भी संस्थाएं भी बनी हुई हैं। यदि किसी आरटीआई एक्टिविस्ट के खिलाफ कोई उत्पीड़न हो रहा है या उसकी जिंदगी खतरे में है तो इन संस्थाओं को स्वस्फूरित तरीके से संज्ञान लेना चाहिए, चाहे वह उत्पीड़न पुलिस प्रशासन द्वारा ही क्यों न किया जा रहा हो, तो मेरी चिंता इस बात की नहीं है कि पुलिस ने ऐसा कर दिया, मेरी चिंता इस बात की भी है कि वह सारी संस्थाएं जो आरटीआई के अधिकार के रक्षा के लिए बनाई गई हैं और जो आरटीआई एक्टिविस्टों को निर्भीकता प्रदान करती है, वह चुप क्यों हैं ??

खैर मैंने अपनी बेचैनी आपके साथ साझा कर दी है।

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