November 1, 2025

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 द्वारा प्रस्तावित तीन-भाषा फार्मूले का मुद्दा शीर्ष अदालत और संसद में उठा,

दिल्ली : केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुद्दा देश की शीर्ष अदालत से संसद तक उठाया गया है। भारतीय जनता पार्टी के वकील जीएस मणि द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 द्वारा प्रस्तावित तीन-भाषा फार्मूले को तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में लागू करने की मांग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में जनहित दायर की है। उधर डीएमके पार्टी ने सदन में विरोध प्रकट कर तीन भाषा सूत्र तमिलनाडु को स्वीकार नहीं है।

याचिका में राज्य सरकारों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें मौलिक जन कल्याण और शिक्षा के अधिकार, संवैधानिक अधिकार या सरकारी दायित्व शामिल हैं जिनकी उपेक्षा या उल्लंघन किया जा रहा है और यह बहुत अच्छी तरह से विचारणीय है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति केंद्र सरकार द्वारा सभी क्षेत्रों के छात्रों के लिए स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से लाई गई हैं।

वहीं डीएमके सांसद ने सदन में कहा कि यह गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर अनुचित रूप से दबाव डालता है। वोटर आइडी और दक्षिणी राज्यों में प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तीन-भाषा फार्मूले को लागू करने को लेकर विपक्षी दलों ने सदन में हंगामा किया। इसके अलावा संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की सदन की कार्रवाई के दौरान केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 द्वारा प्रस्तावित तीन-भाषा, नीति का बचाव किया।

आज सदन की कार्यवाही शुरू होते ही डीएमके सांसदों सहित विपक्षी दलों ने अपने-अपने मुद्दों को लेकर हंगामा किया। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रश्न का जवाब देते हुए तमिलनाडु सरकार को असभ्‍य कह दिया। डीएमके सांसद कन्‍नीमोझी इसपर नाराजगी जाहिर की। डीएमके सांसद ने कहा कि मुझे बहुत दुख हो रहा है कि आज मंत्री जी ने अपने जवाब में तमिलनाडु सरकार को असभ्य कहा है। उन्होंने मेरा नाम भी लिया है। तीन भाषा सूत्र तमिलनाडु को स्वीकार नहीं है। मंत्री और प्रधानमंत्री को लिखा है और कहा है कि यह हमारे मुद्दे हैं और यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है। सांसद कन्‍नीमोझाी की नाराजगी जताने के बाद मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि सम्मानीय साथी और मेरी बहन कनीमोझी ने दो मुद्दे उठाए हैं। मुझे ऐसे शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। जनता और इस मुद्दे को मिक्स नहीं करना चाहिए। मेरे शब्दों से अगर किसी को कष्ट हुआ है तो मैं अपने शब्द वापस लेता हूं। इसके बाद लोकसभा स्पीकर ओम विरला ने कहा कि हमने उस शब्द को संसद की कार्यवाही से हटा दिया है.

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