December 20, 2025

बन रही नीति… अब नगर निगम, पालिका और नगर पंचायत मनमर्जी से खर्च नहीं कर पाएंगे बजट

 

सरकार से मिलने वाले पैसे के अलावा खुद की आमदनी को भी कहीं विकास कार्यों में ही खर्च कर दिया जाता है, तो कहीं वेतन और भत्तों में ही बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है। जरूरत इस बात की है कि नगर निकाय कुल बजट व राजस्व प्राप्ति को श्रेणीकरण के हिसाब से खर्च करें।

राज्य के नगर निकाय अब मनमर्जी से खर्च नहीं कर पाएंगे। निकायों की आमदनी और खर्च को व्यवस्थित करने के लिए पहली बार नीति बनाई जा रही है। इस नीति के आने के बाद निकायों के नेता बिना बजट की हवा-हवाई घोषणाएं नहीं कर पाएंगे।न ही निर्धारित सीमा से अधिक खर्च कर सकेंगे। राज्य के नगर निकाय लगातार सरकार की इमदाद पर निर्भर रहते हैं। कई निकायों की तो कमाई बेहद कम होने से हर खर्च सरकार के बजट से ही चलता है। यहां बजट खर्च करने की व्यवस्था निर्धारित नहीं है।

 

सरकार से मिलने वाले पैसे के अलावा खुद की आमदनी को भी कहीं विकास कार्यों में ही खर्च कर दिया जाता है, तो कहीं वेतन और भत्तों में ही बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है। जरूरत इस बात की है कि नगर निकाय कुल बजट व राजस्व प्राप्ति को श्रेणीकरण के हिसाब से खर्च करें। कई निकायों में अक्सर चुनाव से पहले नेता व पार्षद, सभासद बजट की अनुपलब्धता के बावजूद कई घोषणाएं कर देते हैं। इससे या तो वे घोषणाएं पूरी नहीं हो पाती या फिर कम बजट के बावजूद बड़ी योजनाएं निकायों पर बोझ बन जाती हैं। शहरी विकास विभाग के स्तर से नगर निकायों के लिए बजट खर्च, राजस्व प्राप्ति की नीति तैयार की जा रही है। यह नीति भविष्य में कैबिनेट में लाई जाएगी। कैबिनेट की मुहर के बाद यह अस्तित्व में आ जाएगी।

 

इतना बजट देती है सरकार

सरकार हर बजट में नगर निकायों को 10-10 करोड़ रुपये का प्रावधान करती है। अनिर्वाचित निकायों बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री के लिए दो-दो करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाता है। 2023 के बजट में भी नगर निगमों के लिए सरकार ने 392 करोड़ 96 लाख, नगर पालिकाओं के लिए 464 करोड़ 37 लाख, नगर पंचायतों के लिए 114 करोड़ 70 लाख का प्रावधान किया था। इस साल के बजट में भी कमोबेश ऐसे ही बजटीय प्रावधान किए गए हैं। नए निकायों को सीधे 10-10 करोड़ दिए जाते हैं। अनिर्वाचित निकाय बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री को दो-दो करोड़ का बजट दिया जाता है। दूसरी ओर, केंद्रीय वित्त आयोग से भी निकायों को करीब 450 करोड़ मिलते हैं।

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