देहरादून 21 मई 2023,
जापान: क्वाड लीडर्स समिट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने वक्तव्य की शुरुआत, प्रधानमंत्री एल्बनीसी, प्रधानमंत्री किशिदा, और राष्ट्रपति बायडन, को संबोधित करते हुए की।
उन्होनें कहा कि, मित्रों के बीच, इस क्वाड समिट में भाग लेते हुए मुझे प्रसन्नता है। क्वाड समूह इंडो पेसिफिक में शांति, स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में स्थापित हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इंडो पेसिफिक क्षेत्र वैश्विक व्यापार, इनोवेशन और विकास का इंजन है। हम एकमत हैं कि इंडो पेसिफिक की सुरक्षा और सफलता केवल इस क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। रचनात्मक एजेंडा के साथ, साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर, हम आगे बढ़ रहे हैं।
साझा प्रयासों से हम फ्री ओपन और इंक्लूसिव इंडो पेसिफिक के हमारे विजन को प्रैक्टिकल डायमेंशन दे रहे हैं। क्लाइमेट रिलाएबल सप्लाई चैन हेल्थ सिक्यूरिटी, मैरिटाईम सिक्यूरिटी, काउंटर टेररिज्म जैसे क्षेत्रों में हमारा सकारात्मक सहयोग बढ़ रहा है। कई देश और समूह अपनी इंडो पेसिफिक रणनीति और विजन की घोषणा कर रहे हैं। आज की हमारी बैठक में इस पूरे क्षेत्र के समावेशी और पीपल सेंट्रिको विकास से जुड़े विषयों पर चर्चा करने का अवसर मिलेगा।
मेरा मानना है कि वैश्विक भलाई, मानव कल्याण, शांति और समृद्धि के लिए निरंतर कार्यरत रहेगा। प्रधानमंत्री अल्बनीसी को इस समिट की सफल अध्यक्षता के लिए अभिनन्दन और बधाई देता हूँ। 2024 में, क्वाड लीडर्स समिट का आयोजन भारत में करने में हमें ख़ुशी होगी।
जी-7 शिखर सम्मेलन के कार्य। आज हमने राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को सुना। कल मेरी उनसे मुलाकात भी हुई थी।मैं वर्तमान परिस्थितियों को राजनीति या अर्थव्यवस्था का मुद्दा नहीं मानता। पीपल सेंट्रिक मानना है कि यह मानवता थंथं सेंट्रिक मुद्दा है, मानवीय मूल्यों का मुद्दा है।हमने शुरू से कहा है, कि डायलॉग और डिप्लोमेसी ही एकमात्र रास्ता है।और इस परिस्थिति के समाधान के लिए, भारत से जो कुछ भी बन पड़ेगा, हम यथासंभव प्रयास करेंगे।
वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि हम सब का साझा उद्देश्य है।आज के इंटरकनेक्टेड वर्ल्ड में, किसी भी एक क्षेत्र में तनाव सभी देशों को प्रभावित करता है। विकासशील देश, जिनके पास सीमित संसाधनहैं, सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।वर्तमान वैश्विक स्थिति के चलते, फूड फ्यूल और फ़र्टिलाइज़र क्राइसिस का अधिकतम और सबसे गहरा प्रभाव इन्हीं देशों को भुगतना पड़ रहा है।
यह सोचने की बात है, कि भला हमें शांति और स्थिरता की बातें अलग-अलग फोरम में क्यों करनी पड़ रही हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ जिसकी शुरुआत ही शांति स्थापित करने की कल्पना से की गयी थी, भला आज युद्ध को रोकने में सफल क्यों नहीं होता?आखिर क्यों, संयुक्त राष्ट्र संघ में आतंकवाद की परिभाषा तक मान्य नहीं हो पाई है?अगर आत्मचिंतन किया जाये, तो एक बात साफ़ है।पिछली सदी में बनाये गए संस्थाओं, इक्कीसवीं सदी की व्यवस्था के अनुरूप नहीं हैं। वर्तमान की realities वास्तविकता को रिफ्लेक्ट नहीं करते।इसलिए जरूरी है, कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे बड़े संस्थाओं में रिफॉर्म्स को मूर्त रूप दिया जाये।इनको ग्लोबल साउथ की आवाज भी बनना होगा। वरना हम संघर्षो को ख़त्म करने पर सिर्फ चर्चा ही करते रह जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद मात्र एक टॉक शॉप बन कर रह जायेंगे।
यह जरूरी है, कि सभी देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतर्राष्ट्रीय कानून और सभी देशों की सोवरनटी और टेरीटोरियल इंटेग्रिटी का सम्मान करें।यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिशों के खिलाफ मिलकर आवाज उठायें।भारत का हमेशा यह मत रहा है कि किसी भी तनाव, किसी भी विवाद का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से, बातचीत के ज़रिये, किया जाना चाहिए।और अगर कानून से कोई हल निकलता है, तो उसको मानना चाहिए।और इसी भावना से भारत ने बांग्लादेश के साथ अपने लैंड और मेरीटाइम बाउंड्री विवाद का हल किया था।
भारत में, और यहाँ जापान में भी, हजारों वर्षों से भगवान बुद्ध का अनुसरण किया जाता है।आधुनिक युग में ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका समाधान हम बुद्ध की शिक्षाओं में न खोज पाएं। दुनिया आज जिस युद्ध, अशांति और अस्थिरता को झेल रही है, उसका समाधान बुद्ध ने सदियों पहले ही दे दिया था। भगवान बुद्ध का उद्धरण देते हुए कहा कि, शत्रुता से शत्रुता शांत नहीं होती। अपनत्व से शत्रुता शांत होती है। इसी भाव से हमें सबके साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए।