दिल्ली , सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के खिलाफ बुल्डोजर कार्यवाही संबंधी दायर अवमानना याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में 13 नवंबर, 2024 के फैसले का कथित उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है। जिसमें बिना किसी पूर्व सूचना और सुनवाई का मौका दिए बगैर बुल्डोजर कार्रवाई पर रोक लगाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि विचाराधीन संरचना याचिकाकर्ताओं के स्वामित्व वाली निजी भूमि पर बनाई गई थी। उस पर निर्माण भी 1999 के स्वीकृति आदेश के अनुसार नगर निगम अधिकारियों की उचित मंजूरी से किया गया। उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि उक्त मंजूरी को निरस्त करने की मांग की गई, लेकिन हाईकोर्ट के 12 फरवरी 2006 के आदेश द्वारा उक्त निरस्तीकरण को अलग रखा गया था । जिसका प्रभाव यह है कि मंजूरी अभी भी अस्तित्व में है।
इस याचिका पर पीठ ने क्षेत्र के एसडीएम की जांच रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा कि , एसडीएम ने निरीक्षण किया और 22 दिसंबर 2024 को एक प्रेस नोट भी जारी किया। निरीक्षण के अनुसार, निर्माण स्वीकृति योजना के अनुसार पाया गया। यह भी नोट किया गया कि जो निर्माण गैर-स्वीकृत पाया गया, उसे याचिकाकर्ताओं ने स्वयं हटा दिया। यह प्रस्तुत किया गया कि इन परिसरों में, जो तोड़फोड़ की गई, वह इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की घोर अवमानना है। प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए ? पीठ ने इस बारे में नोटिस जारी करते कर दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 09 फरवरी 2025 को अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर के फैसले का उल्लंघन करते हुए हाटा, कुशीनगर, यूपी में स्थित मदनी मस्जिद के बाहरी क्षेत्र और सामने के हिस्से को ध्वस्त कर दिया। दावों के अनुसार, अधिकारियों ने उन्हें विध्वंस से पहले सुनवाई का अवसर नहीं दिया और विषय निर्माण, जिसे स्वीकृत योजना से परे बताया गया, समझौता योग्य था। अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के अलावा, याचिकाकर्ताओं ने साइट पर यथास्थिति और हुए नुकसान की भरपाई मुआवजा मांग की है। सुनवाई की मौके पर जस्टिस गवई ने टिप्पणी की कि न्यायालय अपने 13 नवंबर के फैसले के उल्लंघन का आरोप लगाने वाली अवमानना याचिकाओं का निपटारा कर रहा है। याचिकाकर्ताओं को अधिकार क्षेत्र वाले हाईकोर्ट में जाने की स्वतंत्रता देता है।