दिल्ली, धर्म छुपाकर दूसरे समुदाय की महिला से शादी किए जाने संबंधी मामले में ट्रायल कोर्ट के एक फैसले से ‘लव जिहाद’ शब्द हटाने संबंधी याचिका पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया है। ट्रायल कोर्ट के जज द्वारा ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए गंभीर टिप्पणी की गई थी। यह मामला उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की एक फास्ट कोर्ट से जुड़ा है। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपने फैसले में में ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। याचिका कर्ता ने’लव जिहाद’ शब्द को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भाटी की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपको क्या दिक्कत है जबकि अदालती फैसले में साफ कहा गया कि ये टिप्पणी तथ्यों के आधार पर की गई है। पीठ ने याचिका कर्ता से सवाल किया कि, आप इस मामले से किस रूप में जुड़े हैं। आप इसे सनसनीखेज बना रहे हैं और यह सही नहीं है। साक्ष्यों के आधार पर कुछ टिप्पणियां की गई हैं. ऐसे में क्या हम इसे हटा सकते हैं? इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली।
अलग अलग समुदाय से जुड़े रेप के एक मामले में सुनवाई करते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट ने कहा था कि ये प्रायोजित तौर पर ‘लव जिहाद’ का मामला प्रतीत होता है। जिसमें विदेशी फंडिंग से इनकार नहीं किया जा सकता। फास्ट ट्रैक्ट कोर्ट ने यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय के एक युवक को लेकर की थी। कोर्ट ने लव जिहाद शब्द को पारिभाषित किया था और दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि इस मामले में महिला अपने बयान से मुकर गई थी। महिला ने बयान दिया था कि वह कोचिंग सेंटर में एक लड़के से मिली. लड़के ने खुद को आनंद कुमार बताया था। दोनों में प्यार हुआ और दोनों ने शादी कर ली. लेकिन, शादी के बाद पता चला कि लड़का मुस्लिम समुदाय से था। इसके बाद लड़के पर रेप और अन्य मामले दर्ज करवाए गए।