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उत्तराखंड विधानसभा
– फोटो : फाइल फोटो
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मंगलवार को कांग्रेस विधायक ममता राकेश के कार्यस्थगन प्रस्ताव पर नियम 58 में जाति प्रमाण पत्र के मुद्दे पर चर्चा की गई। विपक्ष की ओर से नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, विधायक काजी निजामुद्दीन, ममता राकेश ने कहा सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाने में दिक्कतें आ रही है। जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए वर्ष 1985 के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। दस्तावेज उपलब्ध न होने पर प्रमाण पत्र से वंचित हैं।
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सरकार को जाति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया का सरलीकरण कर दस्तावेजों के लिए नौ नवंबर 2000 रखी जानी चाहिए। स्थायी निवास प्रमाण पत्र भी मात्र छह माह के लिए मान्य होता है। जिससे बार-बार नए सिरे से प्रमाण पत्र बनाने प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। प्रमाण पत्र को मान्य होनेे की तिथि भी एक साल होनी चाहिए। सरकार के जवाब से असंतुष्ट विपक्ष ने वेल में आकर हंगामा काटा और सांकेतिक रूप से वॉकआउट किया।
हंगामे को देखते हुए कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने विपक्ष के सवालों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि जाति प्रमाण पत्र जारी करने को दस्तोवजों की तारीख 9 नवंबर 2000 है। वर्ष 2013 में कांग्रेस सरकार के समय में इसका शासनादेश जारी किया गया था। जिसमें यह भी प्रावधान किया गया था कि स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए राज्य गठन से 15 साल से स्थायी तौर पर राज्य में रहने वाला होना चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री बंशीधर भगत ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र बनाने में यदि कोई दिक्कत आ रही है तो सरकार इस पर पुनर्विचार करेगी।
देशराज कर्णवाल ने किया सरकार को असहज
सदन में सत्तापक्ष उस समय असहज हो गया जब कार्यस्थगन में विपक्ष के मामला उठाए जाने के दौरान झबरेड़ा भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल ने जाति प्रमाण पत्र के मामले में फाइल मंत्री के कार्यालय में दबी होने की बात उठाई। कर्णवाल ने कहा कि 2014 में न्यायालय ने इस मामले सरकार को आदेश दिया था। लेकिन 2019 से मंत्री के पास फाइल पड़ी है। विपक्ष ने भी देशराज कर्णवाल की टिप्पणी को भुनाने में देरी नहीं लगाई। विपक्ष का कहना था कि जाति प्रमाण पत्र की दिक्कतों का सत्ता पक्ष के विधायक भी स्वीकार कर रहे हैं।
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