December 16, 2025

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीनों विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की है।

देहरादून 19 नवंबर 2021,

दिल्ली: केंद्रीय सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ उठे किसानों किसानों के आंदोलन तथा आगामी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत राजनीतिक फैसला लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीनों विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की है।

तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर देश भर में किसान पिछले एक साल से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि क़ानूनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान लगभग सात सौ किसान शहीद हो गए हैं। लखीमपुर खीरी और दिल्ली बोर्डर की घटनाएं लोकतांत्रिक इतिहास में शायद ही विस्मृत हो सके।

प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित भाषण में कहा कि ”आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूँ कि हमने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है।इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।”

हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, ख़ासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गाँव ग़रीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये क़ानून लेकर आई थी।’

प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि क़ानूनों पर अपना पक्ष रखते हुए कहा, ”हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि क़ानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया। किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि क़ानून लाए गए थे।”

पीएम मोदी ने कहा, ”मक़सद ये था कि देश के किसानों को, ख़ासकर छोटे किसानों को और ताक़त मिले, उन्हें अपनी उपज की सही क़ीमत और उपज बेचने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा विकल्प मिले. बरसों से ये मांग देश के किसान, देश के कृषि विशेषज्ञ, देश के किसान संगठन लगातार कर रहे थे।

प्रधानमंत्री ने कहा, ”एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमिटी का गठन किया जाएगा. इस कमिटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे.”

पीएम मोदी ने कहा, ”आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फ़ैसला लिया है. ज़ीरो बजट खेती यानी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीक़े से बदलने के लिए, एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमिटी का गठन किया जाएगा.”

कई विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार का यह राजनीतिक क़दम है क्योंकि उसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में किसानों की नाराज़गी से चुनावी नुक़सान की आशंका थी. ऐसे में चुनाव से पहले यह क़दम उठाया गया है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने पीएम मोदी की घोषणा के बाद कहा है कि विरोध प्रदर्शन सिर्फ़ नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि फसलों के लाभकारी दाम की वैधानिक गारंटी के लिए भी था, जिस पर अभी भी कुछ फ़ैसला नहीं हुआ है.

संयुक्त किसान मोर्चा ने आशंका व्यक्त करते हुए तीन कृषि क़ानूनों को रद्द करने के सरकार के फ़ैसले का स्वागत है। लेकिन वे संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने तक इंतज़ार करेंगे।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने पीएम मोदी की घोषणा पर ट्वीट कर कहा, ”आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि क़ानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा. सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे।”

 

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