December 21, 2025

खतरे की जद में उत्तराखंड के 3000 गांव, दस साल में बादल फटने और अतिवृष्टि की 57 घटनाएं

उत्तराखंड के 3000 गांव खतरे की जद में है। हिमालयी क्षेत्र में दस वर्ष में बादल फटने और अतिवृष्टि की 57 घटनाएं हुई हैं। इसका कारण क्षेत्र में सतही तापमान और टोपोग्राफी एलीवेशन के चलते रीजनल लॉकिंग सिस्टम बनना है।

हिमालयी क्षेत्र के 1000 से 2000 मीटर के एलिवेशन बैंड (समुद्र तल से ऊंचाई) में बसे करीब 3000 हजार गांव खतरे की जद में हैं। इसी इलाके में पिछले करीब दस वर्षों में बादल फटने और अतिवृष्टि की 57 घटनाएं हुई हैं। इनमें भी सबसे अधिक 38 घटनाएं ज्यादा खतरनाक थीं।

इसका कारण क्षेत्र में सतही तापमान और टोपोग्राफी एलीवेशन के चलते रीजनल लॉकिंग सिस्टम बनना है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की ओर से नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन ईको सिस्टम नामक शोध में 11 बिंदुओं पर आपदाओं का विश्लेषण किया गया है।

शोध में यह भी पाया गया कि 18 से 28 डिग्री सतही तापमान वाले क्षेत्रों में पिछले दस वर्षों में बादल फटने की 80 फीसदी घटनाएं हुई हैं। इसका कारण खास परिस्थितियों में बनने वाले रीजनल लॉकिंग सिस्टम को माना गया है। जो 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई के बीच बनता है।

 

80 प्रतिशत बादल फटने की घटनाएं

जिसमें करीब 3000 गांव बसे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, मानसून सीजन में जुलाई और अगस्त माह में धरती के 18 से 28 डिग्री सतही तापमान वाले स्थानों पर 80 प्रतिशत बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। जबकि 3 से 17 डिग्री वाले स्थानों पर इन घटनाओं की संख्या 20% है।

 

जो यह दर्शाता है कि घाटियों में जहां बारिश कम है और सतही तापमान अधिक है। वहां बादल फटने और अतिवृष्टि के लिए अनुकूल सिस्टम निर्मित होता है। वहीं टोपोग्राफी एलीवेशन की आकृति के चलते भी बादल फटने जैसी घटना के लिए रीजनल लॉकिंग सिस्टम बन जाता है।

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