देहरादून 24 जून 2022,
कर्नाटक: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में अहं फैसला देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा क जातिवादी दुर्व्यवहार सार्वजनिक स्थान पर होना चाहिए। इसी के साथ ही अदालत ने लंबित मामले को रद्द कर दिया है।
कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले में कहा, “उपरोक्त बयानों को पढ़ने से दो कारक सामने आएं- एक यह है कि इमारत का तहखाना सार्वजनिक स्थान नहीं था और दूसरा केवल वे लोग इसका दावा कर रहे हैं कि जो शिकायतकर्ता मोहन, भवन स्वामी जयकुमार आर नायर और शिकायतकर्ता के सहकर्मी हैं। नायर का आरोपी रितेश पियास से कंस्ट्रक्शन को लेकर विवाद था और उसने भवन निर्माण कार्य के खिलाफ स्टे ले लिया था।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इमारत के कंस्ट्रक्शन के दौरान रितेश पियास ने मोहन के लिए तहखाने में जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल किया। उस वक्त मौके पर पीड़ित और उसके सहकर्मी मौजूद थे। इन सभी मजदूरों को भवन मालिक जयकुमार आर नायर ने ठेके पर काम दिया था।
अदालत ने कहा, “अपशब्दों का प्रयोग स्पष्ट रूप से सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया गया है, इसलिए इसमें सजा का प्रावधान नहीं है।” इसके अलावा, मामले में अन्य कारण भी हैं, जो शिकायत पर संदेह पैदा करते हैं। आरोपी रितेश पियास का भवन मालिक जयकुमार आर नायर से विवाद था और उसने भवन निर्माण के खिलाफ स्टे ले लिया था। इसलिए इसकी भी प्रबल संभावना है कि वह अपने कर्मचारी के सहारे आरोपी को निशाने पर ले रहा है।
साधारण सी खरोंच धारा 323 का आधार नहीं
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता ने रितेश पर उसे चोट पहुंचाने के आरोप में धारा 323 के तहत कार्रवाई की मांग की है। हाई कोर्ट ने यह मांग भी यह कहते हुए खारिज कर दी कि मोहन के शरीर पर चोट के निशान साधारण खरोंच दिखाते हैं। इसमें रक्तस्राव का संकेत नहीं मिलता। इसलिए, साधारण खरोंच के निशान आईपीसी की धारा 323 के तहत अपराध नहीं हो सकते हैं।”
साथ ही निचली अदालत के समक्ष लंबित मामले को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, “उपरोक्त तथ्यों के आधार पर जब अपराध के मूल तत्व ही गायब हैं, तो इस तरह की कार्यवाही को जारी रखने और याचिकाकर्ता पर आपराधिक मुकदमा पूरी तरह से अनुचित होगा, जिससे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।