October 31, 2025

दशहरा आज: जानें रावण दहन का समय, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और आरती

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है। इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर मनाया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंकापति रावण का वध कर माता सीता को उससे आजाद कराया था। इस अवसर पर हर साल लंकापति रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। उत्तर भारत में इस त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल दशहरा 12 अक्टूबर यानी आज मनाया जा रहा है. आइए जानते हैं कि इस साल विजयादशमी पर कौन से शुभ मुहूर्त और योग बन रहे हैं.

ज्योतिष गणना के अनुसार, दशमी तिथि 12 अक्टूबर को दिन में 10 बजकर 58 मिनट पर प्रारंभ होगी और 13 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। रावण दहन का शुभ मुहूर्त सूर्यास्त के बाद से रात 10:33 बजे तक रहेगा। इस साल रावण दहन का सबसे उत्तम मुहूर्त शाम 05:53 बजे से शाम 07:27 बजे तक रहेगा। रावण दहन हमेशा प्रदोष काल में श्रवण नक्षत्र में ही किया जाता है। श्रवण नक्षत्र 12 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 25 मिनट पर प्रारंभ होगा और 13 अक्तूबर को सुबह 04 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।

दशहरा के दिन पूजन का विजय मुहूर्त – दशहरा के दिन पूजन का विजय मुहूर्त दोपहर 02:02 बजे से दोपहर 02:48 बजे तक है। अपराह्न पूजा का समय दोपहर 01:16 बजे से दोपहर 03:35 बजे तक है।

हिंदू धर्म में दशहरा का विशेष महत्व है। हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इसे अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाते हैं। इसी के कारण इसे विजयादशमी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन प्रभु श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था। इसी के कारण इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है।

भजन – रघुपति राघव राजाराम

रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम ॥

रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम ॥

सुंदर विग्रह मेघश्याम

गंगा तुलसी शालग्राम ॥

रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम ॥

भद्रगिरीश्वर सीताराम

भगत-जनप्रिय सीताराम ॥

रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम ॥

जानकीरमणा सीताराम

जयजय राघव सीताराम ॥

रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम ॥

रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम ॥

श्री राम आरती (Shri Raam Aarti)

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।

नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं।।

कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं।

पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन।

रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं।।

सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां।

आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं।।इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं।

मम हृदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं।।

मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।

करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।

एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली।।

दोहा

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

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