December 8, 2025

एसआईआर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक और एकमात्र प्रमाण नहीं माना

Delhi, 12 August 2025,

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण एसआईआर मामले में मंगलवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक और एकमात्र प्रमाण नहीं माना जा सकता।जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि पहचान और नागरिकता साबित करने के लिए आधार कार्ड के अलावा अन्य मान्य दस्तावेजों की भी आवश्यकता है।

बिहार में मतदाता सूची-2025 के विशेष पुनरीक्षण के दौरान चुनाव आयोग के बिहार मतदाता सूची से 65 लाख लोगों के नामों को हटाने और आधार कार्ड को नागरिकता या पहचान का प्रमाण नहीं मानने के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। जिस पर आज सुनवाई हुई।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईआर के दौरान संवैधानिक प्रावधानों को खुलेआम दरकिनार कर ब्लाक लेवल अधिकारी बीएलओ और अन्य संबंधित मतदाता निबंधन से जुड़े अधिकारियों ने मनमानी की है। वहीं अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने भी सवाल उठाए।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से दलील दी गई थी कि आधार कार्ड का मुख्य उद्देश्य पहचान स्थापित करना है, लेकिन यह नागरिकता की गारंटी नहीं देता। कई मामलों में आधार कार्ड में नाम, जन्मतिथि या पते में त्रुटियां पाई जाती हैं। ऐसे में अन्य दस्तावेजों के साथ मिलान और सत्यापन आवश्यक है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण मानना सही नहीं है। इसकी भी जांच और सत्यापन जरूरी है। पहचान के लिए केवल आधार कार्ड पर निर्भर रहने से गलत नाम या अपूर्ण विवरण वाली प्रविष्टियां मतदाता सूची में रह सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नागरिकता साबित करने के लिए पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र या अन्य सरकारी मान्यता प्राप्त दस्तावेजों को भी देखा जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण एसआईआर के तहत मतदाता सूची का अद्यतन और सत्यापन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जिससे चुनाव की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहती है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह मतदाता सूची को सटीक और त्रुटिरहित बनाए, और इसके लिए जरूरी कदम उठाए।नागरिकों और गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना और बाहर करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। आपको चुनाव आयोग से सहमत होना चाहिए। जब चुनाव आयोग कह रहा है कि, यह अभी सिर्फ एक ड्राफ्ट रोल है। पीड़ित व्यक्ति आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं। यह फाइनल सूची नहीं है। पहले हम प्रक्रिया की जांच करेंगे। इसके बाद हम वैधता पर विचार करेंगे।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से दलील दी गई थी कि आधार कार्ड का मुख्य उद्देश्य पहचान स्थापित करना है, लेकिन यह नागरिकता की गारंटी नहीं देता। कई मामलों में आधार कार्ड में नाम, जन्मतिथि या पते में त्रुटियां पाई जाती हैं। ऐसे में अन्य दस्तावेजों के साथ मिलान और सत्यापन आवश्यक है।

चुनाव आयोग ने कोर्ट में बताया कि, नियमों के अनुसार चुनाव आयोग को मतदाता सूची से बाहर किए गए अथवा शामिल किए गए लोगों की अलग सूची तैयार करने की आवश्यकता नहीं है। नियमों के अनुसार चुनाव आयोग को किसी को शामिल न किए जाने का कारण प्रकाशित करने की बाध्यता नहीं है। जिन लोगों को शामिल नहीं किया गया है, ऐसी किसी भी सूची को अधिकार के रूप में नहीं मांगा जा सकता है। वे सभी इसका उपायों का सहारा ले सकते हैं।

कोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में मतदाता सूची के सत्यापन के लिए केवल आधार कार्ड ही पहचान के लिए सम्पूर्ण दस्तावेज नहीं होगा। बल्कि अन्य पहचान के दस्तावेजों का भी सहारा लिया जाएगा‌। यह फैसला न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण और अपडेट करने के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाया जाएगा।

 

 

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