जब राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक क्षेत्र सशक्त होगा, तो सभी का प्रयास संकल्प की पूर्ति में योगदान देगा, और इन्हीं सामूहिक प्रयासों से 2047 तक एक विकसित भारत का निर्माण होगा: प्रधानमंत्री मोदी,
Ayodhya, 25 November 2025,
राष्ट्र के सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज उत्तर प्रदेश के अयोध्या में पवित्र श्री राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर भगवा ध्वज फहराया। ध्वजारोहण उत्सव मंदिर निर्माण के पूर्ण होने और सांस्कृतिक उत्सव एवं राष्ट्रीय एकता के एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है। इस अवसर पर उपस्थित जन
समूह को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि आज अयोध्या नगरी भारत की सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष-बिंदु की साक्षी बन रही है। श्री मोदी ने कहा, “आज पूरा भारत और पूरा विश्व भगवान श्री राम की भावना से ओतप्रोत है।” उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रत्येक राम भक्त के हृदय में अद्वितीय संतोष, असीम कृतज्ञता और अपार दिव्य आनंद है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदियों पुराने घाव भर रहे हैं, सदियों का दर्द समाप्त हो रहा है और सदियों का संकल्प आज सिद्ध हो रहा है। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि यह उस यज्ञ की परिणति है जिसकी अग्नि 500 वर्षों तक प्रज्वलित रही, एक ऐसा यज्ञ जिसकी आस्था कभी डगमगाई नहीं, आस्था क्षण भर के लिए भी खंडित नहीं हुई। उन्होंने कहा कि आज भगवान श्री राम के गर्भगृह की अनंत ऊर्जा और श्री राम परिवार की दिव्य महिमा, इस धर्म ध्वजा के रूप में, इस दिव्यतम एवं भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हुई है।

श्री मोदी ने जोर देकर कहा, “यह धर्म ध्वजा केवल एक ध्वज नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का ध्वज है।” उन्होंने बताया कि इसका केसरिया रंग, इस पर अंकित सूर्यवंश की महिमा, अंकित पवित्र ॐ और उत्कीर्ण कोविदार वृक्ष, रामराज्य की महानता के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि यह ध्वज संकल्प है, यह ध्वज सिद्धि है, यह ध्वज संघर्ष से सृजन की गाथा है, यह ध्वज सदियों से संजोए गए स्वप्नों का साकार रूप है, और यह ध्वज संतों की तपस्या और समाज की सहभागिता की सार्थक परिणति है। यह घोषणा करते हुए कि आने वाली सदियों और सहस्राब्दियों तक, यह धर्म ध्वज भगवान राम के आदर्शों और सिद्धांतों का उद्घोष करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा हम एक जीवंत समाज हैं, हमें दूरदृष्टि के साथ काम करना होगा, हमें आने वाले दशकों, आने वाली सदियों को ध्यान में रखना ही होगा।उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले 11 वर्षों में महिलाओं, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, वंचितों, किसानों, श्रमिकों और युवाओं – समाज के हर वर्ग को विकास के केंद्र में रखा गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक क्षेत्र सशक्त होगा, तो सभी का प्रयास संकल्प की पूर्ति में योगदान देगा, और इन्हीं सामूहिक प्रयासों से 2047 तक एक विकसित भारत का निर्माण होगा।
अगर भारत को वर्ष 2047 तक विकसित बनाना है, अगर समाज को सामर्थ्यवान बनाना है, तो हमें अपने भीतर “राम” को जगाना होगा। देश को आगे बढ़ना है तो अपनी विरासत पर गर्व करना होगा। हमें आने वाले दस वर्षों का लक्ष्य लेकर चलना है कि हम भारत को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे। भारत लोकतंत्र की जननी है, लोकतंत्र हमारे डीएनए में है। विकसित भारत की यात्रा को गति देने के लिए ऐसा रथ चाहिए जिसके पहिये वीरता और धैर्य हों, जिसका ध्वज सत्य और परम आचरण हो, जिसके घोड़े शक्ति, विवेक, संयम और परोपकार हों, और जिसकी लगाम क्षमा, करुणा और समता हो।
अपनी विरासत पर गर्व के साथ-साथ गुलामी की मानसिकता से पूर्ण मुक्ति को भी उतना ही महत्वपूर्ण बताते हुए, प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि 190 साल पहले, 1835 में, मैकाले नामक एक अंग्रेज संसदविद ने भारत को उसकी जड़ों से उखाड़ फेंकने का बीज बोया और मानसिक गुलामी की नींव रखी। उन्होंने कहा कि 2035 में उस घटना को दो सौ साल पूरे हो जाएंगे और आग्रह किया कि आने वाले दस साल भारत को इस मानसिकता से मुक्त करने के लिए समर्पित होने चाहिए। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि मैकाले के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा। भारत को स्वतंत्रता तो मिली, लेकिन हीन भावना से मुक्ति नहीं मिली। उन्होंने कहा कि एक विकृति फैल गई, जहां हर विदेशी चीज को श्रेष्ठ माना जाने लगा, जबकि हमारी अपनी परंपराओं और प्रणालियों को केवल दोष की दृष्टि से देखा जाने लगा।
