दिल्ली , अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक वाला दर्जा बरकरार रहेगा।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ सहित सात जजों की संविधान पीठ के तीन जज फैसले के खिलाफ थे। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का बहुमत का फैसला है। वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का असहमति का फैसला है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘फैसले पर 4 अलग-अलग राय हैं। आर्टिकल 30 भेदभाव ना किए जाने की गांरटी देता है। आर्टिकल 30 कमजोर हो जाएगा। यदि यह केवल उन संस्थानों पर लागू होता है जो संविधान लागू होने के बाद स्थापित किए गए हैं। इस प्रकार अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान जो संविधान लागू होने से पहले स्थापित किए गए थे। वे भी अनुच्छेद 30 द्वारा शासित होंगे। संविधान के पहले और बाद के इरादे के बीच अंतर 30 (1) को कमजोर करने के लिए नहीं किया जा सकता है।अल्पसंख्यक संस्था की स्थापना और प्रशासन दोनों एक साथ हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने किया, ‘सवाल था किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान मानने के क्या संकेत हैं? क्या किसी संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान इसलिए माना जाएगा क्योंकि इसकी स्थापना किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति द्वारा की गई है
या इसका प्रशासन किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है?’
जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसके तहत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की वैधता तय करने के लिए 3 जजों की नई बेंच गठित करने के लिए मामले के कागजात अदालत के समक्ष रखे जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के अपने उस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अनुच्छेद 30 द्वारा प्रदत्त अधिकार पूर्ण नहीं है. इस प्रकार अल्पसंख्यक संस्थान का विनियमन अनुच्छेद 19 (6) के तहत संरक्षित है। उन्होंने कहा कि सोलिसिटर जनरल आफ इंडिया ने कहा है कि केंद्र प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि, 7 जजों का संदर्भ नहीं दिया जा सकता। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न करने की गारंटी देता है। सवाल यह है कि क्या इसमें भेदभाव न करने के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी है?
फरवरी में सुरक्षित रखा था फैसला
एक फरवरी को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मसले पर देश की शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू एक्ट में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया, ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया। प्रतिष्ठित संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की बात करता है। जबकि 1951 के संशोधन के जरिए विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को खत्म करने का प्रावधान किया गया।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1875 में सर सैयद अहमद खान की अगुवाई में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी। कई साल के बाद 1920 में, इसे एक विश्वविद्यालय में तब्दील कर दिया गया।
Supreme Court’s decision: Aligarh Muslim University’s minority status will remain intact.