अरावली पहाड़ियों में खनन को लेकर मचे बवाल और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्पन्न हुए विवाद के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का क्लैरिफिकेशन,
Delhi 23 December 2025,
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2025 में अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को मंजूरी दी 3 नई परिभाषा के अनुसार, अगर किसी भू-आकृति की ऊंचाई आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा है, तो उसे अरावली पहाड़ी माना जाएगा 3 साथ ही, ऐसी दो या अधिक पहाड़ियां अगर 500 मीटर के दायरे में स्थित हों, तो उन्हें अरावली रेंज कहा जाएगा 3 समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा की अपील की 6 यह अपील 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार की अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को स्वीकार करने के बाद की गई
अरावली पर्वत श्रृंखला उत्तर में दिल्ली से लेकर दक्षिण में गुजरात तक फैली हुई है, जिसका दो-तिहाई हिस्सा राजस्थान से होकर गुजरता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली को लेकर दी गई एक नई, समान परिभाषा ने पर्यावरण विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और आम जनता के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। गुरुग्राम और उदयपुर समेत कई शहरों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए। इनमें स्थानीय लोग, किसान, पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अलावा कुछ जगहों पर वकील और राजनीतिक दल भी शामिल हुए। इन आंदोलनकारियों का कहना है कि, अरावली उत्तर पश्चिम भारत में “रेगिस्तान बनने से रोकने, भूजल को रीचार्ज करने और लोगों की आजीविका बचाने” के लिए ज़रूरी है।विशेषज्ञों का कहना है कि छोटी-छोटी झाड़ियों से ढकी पहाड़ियां भी रेगिस्तान बनने से रोकने, भूजल रीचार्ज करने और स्थानीय लोगों के रोज़गार में अहम योगदान देती हैं। अरावली को सिर्फ़ ऊंचाई से नहीं बल्कि उसके पर्यावरणीय, भूगर्भीय और जलवायु संबंधी महत्व से परिभाषित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अरावली पहाड़ियों के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से के कानूनी संरक्षण से बाहर होने की आशंका है, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इससे खनन और निर्माण गतिविधियां बढ़ेंगी, जिसका सीधा असर दिल्ली-एनसीआर पर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को मंजूरी दी है। जिसके अनुसार, यदि किसी भू-आकृति की ऊंचाई आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक है, तो उसे अरावली पहाड़ी माना जाएगा। साथ ही, ऐसी दो या अधिक पहाड़ियां अगर 500 मीटर के दायरे में स्थित हों, तो उन्हें अरावली रेंज कहा जाएगा। अरावली पर्वत श्रृंखला, जो थार मरुस्थल और उत्तर भारत के उपजाऊ मैदानों के बीच एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच की तरह काम करती हैं को गंभीर खतरे की संभावना हो सकती है।
अरावली पहाड़ियों में खनन को लेकर मचे बवाल और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्पन्न हुए विवाद और मचे बवाल के बीच केंद्र सरकार क्लैरिफिकेशन दिया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने साफ कर दिया है कि अरावली में माइनिंग पर सख्ती कम नहीं हुई है। बल्कि अब 90 फीसदी से ज्यादा इलाका पूरी तरह संरक्षित है।
उन्होंने दो टूक कहा कि किसी भी तरह की ढील नहीं दी गई है। मंत्री ने उन तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया है जो यह दावा कर रही थीं कि अरावली में खनन के दरवाजे खुल गए हैं।

गौरतलब है कि अरावली का विस्तार भारत के चार राज्यों दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के 39 जिलों में है। यह कोई छोटा-मोटा क्षेत्र नहीं बल्कि 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला विशाल प्राकृतिक खजाना है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, इस पूरे इलाके में मात्र 0.19 फीसदी यानी करीब 2 फीसदी हिस्से में ही की पात्रता हो सकती है, बाकी पूरा क्षेत्र सुरक्षित रहेगा। अरावली को बचाने की कानूनी प्रक्रिया कोई नई नहीं है, बल्कि 1985 से इस पर याचिकाएं चल रही हैं। इन याचिकाओं का मूल उद्देश्य अरावली क्षेत्र में खनन पर सख्त और स्पष्ट नियम लागू करना रहा है, जिसका सरकार पूरी तरह समर्थन करती है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने उन चर्चाओं पर कड़ी नाराजगी जताई जो सोशल मीडिया और कुछ यूट्यूबर्स द्वारा फैलाई जा रही थी। उन्होंने कहा कि लोग ‘100 मीटर’ के नियम को गलत तरीके से पेश कर रहे थे, जिससे आम जनता में काफी कन्फ्यूजन पैदा हो गया था। कुछ यूट्यूब चैनल और लोगों द्वारा यह प्रचार किया जा रहा था कि नए नियमों का मतलब है कि पहाड़ी की चोटी से नीचे की तरफ खुदाई की अनुमति मिल गई है। भूपेंद्र यादव ने इसे सिरे से खारिज करते हुए बताया कि यह जानकारी पूरी तरह गलत है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 100 मीटर का मापदंड टॉप से नहीं, बल्कि पहाड़ी के बेस स्ट्रक्चर से लागू होता है।
मंत्री भूपेन्द्र यादव ने बताई सच्चाई
मंत्री ने तकनीकी बारीकियों को समझाते हुए कहा कि सुरक्षा सीमा पहाड़ी के आधार यानी बॉटम से मानी जाएगी, जहां तक पहाड़ी का फैलाव होता है। चाहे वह हिस्सा जमीन के अंदर ही क्यों न हो, वहां से लेकर ऊपर 100 मीटर तक का पूरा इलाका संरक्षित रहेगा। इस दायरे में किसी भी तरह की खुदाई या व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह नियम इतना सख्त है कि अगर दो अरावली पहाड़ियों के बीच केवल 500 मीटर का ही अंतर है, तो उनके बीच की समतल जमीन भी अरावली रेंज का हिस्सा मानी जाएगी। यानी केवल पहाड़ ही नहीं, बल्कि उनके बीच की भूमि भी संरक्षण के दायरे में आएगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और वैज्ञानिक मानकों के आधार पर तय की गई यह परिभाषा अब भ्रम की सभी गुंजाइश खत्म करती है।
भूपेंद्र यादव ने दिल्ली को लेकर स्थिति एकदम साफ कर दी है कि राष्ट्रीय राजधानी के अरावली हिल्स क्षेत्र में किसी भी तरह की माइनिंग पूरी तरह बैन है और यह प्रतिबंध आगे भी जारी रहेगा। अरावली में लगभग 20 से ज्यादा फॉरेस्ट रिजर्व प्रोटेक्टेड एरिया बने रहेंगे, जिनकी लगातार निगरानी की जा रही है। पहले की खनन प्रक्रियाओं में अक्सर यह देखा जाता था कि टॉप को छोड़कर नीचे खुदाई कर ली जाती थी, लेकिन अब ऐसा करना संभव नहीं होगा। सरकार का मकसद किसी तरह का विकास रोकना नहीं है, बल्कि प्राकृतिक विरासत, पर्यावरण संतुलन और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने आगे कहा कि सरकार पिछले दो सालों से ‘ग्रीन अरावली’ पहल चला रही है, जिसके तहत पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है। यादव ने बताया कि वे ग्रीन अरावली के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। हाल ही में जयपुर में डीएफओ के साथ हुई बैठक में भी हर जिले में अरावली संरक्षण को लेकर चर्चा की गई है। हम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह समर्थन कर रहे हैं और सरकार ‘ग्रीन अरावली’ को लेकर एक बड़ा मूवमेंट चला रही है।
