दिल्ली: उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में विलम्ब पर सुप्रीम कोर्ट ने आज चिंता व्यक्त की और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। न्यायाधीश पद के लिए उच्च न्यायालयों द्वारा अनुशंसित 70 नामों पर निर्णय क्यों नहीं किया गया? कॉलेजियम को सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं भेजा गया?
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि ये नाम पिछले 10 महीने से सरकार के पास लंबित हैं। जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आखिरी आदेश के बाद पिछले सात महीने में जजों की नियुक्ति के मामले में कुछ नहीं हुआ है।
न्यायमूर्ति कौल ने कड़ाई बरतते हुए कहा कि, ‘मैं आज चुप हूं, क्योंकि वकील ने जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा है। लेकिन मैं अगली तारीख पर चुप नहीं रहूंगा।’ नियुक्तियों के मामले में पीठ हर 10 दिन में सुनवाई करेगी और मामले दर मामले के आधार पर इससे निपटेगी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से सरकार के खिलाफ ये टिप्पणियां उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की शीघ्र नियुक्ति से संबंधित एक मामले में आईं हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित याचिका में कहा गया है कि सरकार कॉलेजियम द्वारा मंजूरी दिए गए नामों को अलग करती है और नियुक्ति के लिए मंजूरी दिए जाने वाले न्यायाधीशों के नामों को चुनती है।
उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों के आधार पर ही की जाती है। एक बार जब सुप्रीम कोर्ट नामों को मंजूरी दे देता है, तो उन्हें नियुक्ति के लिए सरकार के पास भेज दिया जाता है। सरकार के पास या तो नामों को मंजूरी देने या नामों पर पुनर्विचार के लिए इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस भेजने का विकल्प है। लेकिन पुनर्विचार के बाद अगर कॉलेजियम नामों को दोहराता है तो सरकार के पास नियुक्तियों को मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
न्यायमूर्ति कौल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, न्यायाधीशों की नियुक्तियों में विलम्ब होने से अंततः न्यायपालिका को योग्य उम्मीदवारों से वंचित होना पड़ेगा। वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए अनुशंसित नामों में से कम से कम 16 नामों को अलग करके चुन रही है।