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जंगल की आग रोकने के लिए अब जनसहभागिता की जरूरत - Separato Spot Witness Times
राज्य समाचार

जंगल की आग रोकने के लिए अब जनसहभागिता की जरूरत

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में साल दर साल बेतहाशा वृद्धि हो रही है। 2002 में जंगल की आग की 922 घटनाएं हुई थीं जिनकी संख्या 2024 में 21 हजार पार हो गई। इन घटनाओं में एक लाख 80 हजार हेक्टेयर से अधिक जंगल जल गए। मानवबल की कमी के कारण वन विभाग भी वनाग्नि रोकने में नाकाम होता जा रहा है। ऐसे में अब जनसहभागिता की जरूरत आन पड़ी है।

विशेषज्ञों की सलाह के बाद सरकार ने भी जनसहभागिता की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। ग्राम पंचायत स्तरीय वनाग्नि सुरक्षा समितियों के गठन की कवायद शुरू कर दी गई है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की हाल में जारी हुई रिपोर्ट पर गौर करें तो नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच देश में वनों में दो लाख से अधिक घटनाएं हुईं। इनमें सर्वाधिक 74% की वृद्धि उत्तराखंड में रिकॉर्ड की गई। इसी कारण वनाग्नि में पिछले वर्ष 13वें नंबर पर रहा उत्तराखंड अब पहले स्थान पर है। वनाग्नि न रोक पाने की वजह है राज्य में बुनियादी ढांचे की भारी कमी।

एक वन रक्षक पर 666 हेक्टेयर वन के सुरक्षा की जिम्मेदारी

राज्य में वन क्षेत्रफल 24,295 वर्ग किलोमीटर (24,29,500 हेक्टेयर) है। यह राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 45.44% है। इतने बड़े क्षेत्र की सुरक्षा के लिए मात्र 3,650 वन रक्षकों की तैनाती है। यानी हर वन रक्षक पर करीब 666 हेक्टेयर की जिम्मेदारी है। वन रक्षकों पर केवल वनाग्नि रोकने की ही नहीं बल्कि अवैध कटान, खनन, वन्यजीवों के शिकार व वन्यजीव संबंधी अपराधों को रोकने की भी जिम्मेदारी है। जख्म पर नमक छिड़कने वाली बात यह है कि अवैध कटान के कारण राजस्व की जो हानि होती है उसकी भरपाई वन रक्षकों या वनपालों के वेतन में कटौती करके की जाती है।

वनाग्नि सुरक्षा समिति को हर साल 30 हजार रुपये

उत्तराखंड में वनाग्नि रोकने के लिए विशेषज्ञों के अलावा एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट ने भी सलाह दी। उसके बाद राज्य सरकार वनाग्नि रोकने के लिए जनसहभागिता पर गंभीर हुई। गत 12 फरवरी को हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने ग्राम पंचायत स्तरीय वनाग्नि सुरक्षा समितियों के गठन के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। हर समिति को करीब 500-600 हेक्टेयर वन क्षेत्र आवंटित किया जाएगा। वनों की निगरानी, सुरक्षा और वनाग्नि रोकने की तत्परता के लिए हर समिति को हर साल 30 हजार रुपये इंसेंटिव के रूप में दिए जाएंगे।

एनजीटी ने भी कमी पर ध्यान दिलाया

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में न्याय मित्र की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि उत्तराखंड में वनाग्नि प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी है। पिछले अप्रैल में एनजीटी ने इस मामले में सहायता के लिए अधिवक्ता गौरव बंसल को एमिकस क्यूरी (अदालत का मित्र) नियुक्त किया था। उन्होंने 14 अक्टूबर को एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट में कहा कि महत्वपूर्ण कमियों को दूर करना जरूरी है। इसमें अग्निशमन उपकरणों, गश्ती वाहन और समन्वय के लिए संचार उपकरणों की कमी शामिल है। रिपोर्ट में एनजीटी को ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले वनकर्मियों को शहीद का दर्जा देने का भी सुझाव दिया गया है।

 

साल दर साल कितनी आग, कितना नुकसान

साल घटनाएं नुकसान जंगल जले
2019 2,158 2,981 हेक्टेयर
2020 135 172 हेक्टेयर
2021 2,823 3,944 हेक्टेयर
2022 2186 3,425 हेक्टेयर
2023 773 933.55 हेक्टेयर
2024 21,033 1,80,800 हेक्टेयर
वनाग्नि प्रबंधन की दृष्टि से पहला आधा घंटा बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसमें आग को नियंत्रित करने और नुकसान को सीमित करने की संभावना बहुत अधिक होती है। इस काम को जनसहभागिता से ही किया जा सकता है। इसके लिए ग्राम वन समितियों को आग बुझाने के लिए पर्याप्त उपकरण देने दिए चाहिए। वनाग्नि नियंत्रण के दौरान घायल होने वालों के लिए पर्याप्त दुर्घटना बीमा होना चाहिए। – गजेंद्र पाठक, संयोजक, शीतलाखेत मॉडल

प्रदेश में पहले से ग्राम पंचायत स्तर पर वनाग्नि सुरक्षा समितियां हैं। वे हमेशा जंगल की आग बुझाने में योगदान देती रही हैं। अब उनको प्रोत्साहन राशि देने का फैसला बहुत अच्छा है। इससे समितियों से जुड़े लोग उत्साह से क्षेत्र की वनाग्नि रोकने में और मददगार होंगे। हर गांव की समिति को वनाग्नि रोकने के लिए वन विभाग ने प्रशिक्षित किया है। – एसके दुबे, डीएफओ, बदरीनाथ वन प्रभाग

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