दिल्ली , राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज नई दिल्ली में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय जिला न्यायपालिका सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित किया। उन्होंने इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के ध्वज और प्रतीक चिन्ह का अनावरण भी किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि अपनी स्थापना के बाद से ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की न्यायिक प्रणाली के सजग प्रहरी के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के कारण भारतीय न्यायशास्त्र का स्थान बहुत सम्मानजनक रहा है। उन्होंने भारतीय न्यायपालिका से जुड़े सभी वर्तमान और पूर्व लोगों के योगदान की सराहना की। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनसे लोगों का हमारी न्यायिक प्रणाली के प्रति विश्वास और लगाव बढ़ा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा की भावना हमारी परंपरा का हिस्सा रही है। उन्होंने पिछले अवसर पर अपने संबोधन का उल्लेख करते हुए दोहराया कि लोग देश के प्रत्येक न्यायाधीश को भगवान मानते हैं। हमारे देश के प्रत्येक न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी का नैतिक दायित्व है कि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें। जिला स्तर पर यह नैतिक दायित्व न्यायपालिका का प्रकाश स्तंभ है। जिला स्तर की अदालतें करोड़ों नागरिकों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करती हैं। इसलिए जिला अदालतों के माध्यम से लोगों को संवेदनशीलता और तत्परता के साथ कम खर्च पर न्याय दिलाना ही हमारी न्यायपालिका की सफलता का आधार है।
सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में, साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ और खुलेआम घूमते रहते हैं। जो लोग अपराधों के पीड़ित होते हैं, वे इस डर में जीते हैं जैसे उन गरीबों ने ही कोई अपराध किया हो। राष्ट्रपति ने कहा कि गांवों के गरीब लोग अदालत जाने से डरते हैं। वे बहुत मजबूरी में ही अदालत की न्याय प्रक्रिया में भागीदार बनते हैं। कई बार वे चुपचाप अन्याय सह लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि न्याय के लिए लड़ना उनके जीवन को और अधिक कष्टमय बना सकता है। उनके लिए गांव से दूर एक बार के लिए भी न्यायालय जाना, मानसिक और आर्थिक दबाव का कारण बन जाता है। ऐसे में कई लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि स्थगन की संस्कृति के कारण गरीब लोगों को कितना दर्द सहन करना पड़ता है। इस स्थिति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।राष्ट्रपति ने कहा कि जेल में बंद महिलाओं के बच्चों के सामने पूरा जीवन शेष होता है। हमारी प्राथमिकता उनके स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए किए जा रहे कार्यों का आकलन और सुधार करने से जुड़ी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किशोर अपराधी भी अपने जीवन के शुरुआती चरण में होते हैं। उनकी सोच और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उपाय करना, उन्हें जीवन जीने के लिए उपयोगी कौशल प्रदान करना और उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने खुशी जताते हुए कहा कि, सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया है। इसके तहत पहली बार जेल में बंद और निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि का एक तिहाई हिस्सा काट चुके लोगों को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है। उन्होंने विश्वास जताया कि आपराधिक न्याय की नई प्रणाली को इस तत्परता से लागू करके हमारी न्यायपालिका न्याय के एक नए युग की शुरुआत करेगी।
Since its inception, the Supreme Court of India has made an invaluable contribution as a vigilant watchdog of the judicial system of the world’s largest democracy. President Draupadi Murmu.