December 18, 2025

इरान और इजरायल युद्ध को लेकर सोनिया गांधी ने एक पत्र के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

Delhi , 21 Jun 2025,

भारत की पहले से स्थापित विदेश नीति, तत्कालीन सहयोगी देशों और इरान और इजरायल युद्ध को लेकर सीपीपी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक पत्र के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इसी पत्र का उल्लेख करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया में पोस्ट कर वैश्विक स्तर पर बढ़ते युद्ध के ख़तरों के परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस पार्टी के विचार साझा किए।

उन्होने कहा कि ईरान भारत का पुराना मित्र रहा है और हमारे साथ गहरे सभ्यतागत संबंधों से बंधा हुआ है। इसका जम्मू-कश्मीर सहित महत्वपूर्ण मोड़ों पर दृढ़ समर्थन का इतिहास रहा है। 1994 में, ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र आयोग में भारत की आलोचना करने वाले प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने इस्लामी गणराज्य ईरान (1979 की इस्लामिक क्रान्ति के बाद से)अपने पूर्ववर्ती, शाही राज्य ईरान की तुलना में भारत का सहयोगी रहा है। उन्होंने विदेशों में कार्यरत भारतीयों का हवाला देते हुए बताया कि, लाखों भारतीय पश्चिम एशिया में रोजगार कर रहे हैं।इस बीच, भारत और इजरायल ने हाल के दशकों में राजनीतिक संबंध भी विकसित किए हैं। यह अनूठी स्थिति हमारे देश को नैतिक जिम्मेदारी और कूटनीतिक लाभ देती है ताकि तनाव कम करने और शांति के लिए एक पुल के रूप में कार्य किया जा सके। यह केवल एक अमूर्त सिद्धांत नहीं है। लाखों भारतीय नागरिक पश्चिम एशिया में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं, जो इस क्षेत्र में शांति को राष्ट्रीय हित का महत्वपूर्ण मुद्दा बनाता है।

ईरान के खिलाफ इजरायल की युद्धक कार्रवाई, जिसे शक्तिशाली पश्चिमी देशों से लगभग बिना शर्त समर्थन प्राप्त है। जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 7 अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा किए गए जघन्य और कायरता पूर्ण हमले को पूरी तरह से निंदा की है। हम इजरायल की विनाशकारी और असंगत प्रतिक्रिया के सामने चुप नहीं रह सकते। 55 हजार से अधिक फिलिस्तीनियों ने अपनी जान गंवा दी है। गाजा अकाल के कगार पर खड़ा है, और इसकी नागरिक आबादी अभी भी अकथनीय कठिनाई झेल रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत की दीर्घकालिक और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता को लगभग त्याग दिया है। नई दिल्ली की चुप्पी हमारी नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से विचलित करने वाली विदाई को दर्शाती है। यह न केवल आवाज की हानि बल्कि मूल्यों के ह्रास को भी दर्शाता है।उन्होंने कहा कि भी बहुत देर नहीं हुई है। भारत को स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए, जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और तनाव को कम करने और पश्चिम एशिया में बातचीत की वापसी को बढ़ावा देने के लिए हर उपलब्ध कूटनीतिक चैनल का इस्तेमाल करना चाहिए।

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