दिल्ली , सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी जनजातियों के आरक्षण के मामले में 2004 में दिए गए फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने 6:1 बहुमत से फैसला दिया है कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी) के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने का आह्वान किया, ताकि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के दायरे से बाहर किया जा सके।
7 जजों की संविधान पीठ ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में फैसला दिया था कि एससी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती।
सीजेआई ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के उपवर्गीकरण यानी कैटेगरी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि इन उपवर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ नहीं है, जो राज्य को किसी जाति को उपवर्गीकृत करने से रोकता हो। कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि उपवर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए, इस मामले में राज्य अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता। हालांकि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है।
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। उप-वर्गीकरण का आधार ये है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जस्टिस गवई ने कहा कि अनुसूचित जाति के क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) के बच्चों की तुलना गांव में मैला ढोने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्ति के बच्चों से करना बेईमानी होगी। उन्होंने कहा कि, राज्यों को एससी/एसटी वर्गों से क्रीमी लेयर को भी बाहर करना चाहिए। भारत के संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के एक वक्तव्य का जिक्र करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि- ‘इतिहास बताता है कि जब नैतिकता का सामना अर्थव्यवस्था से होता है, तो जीत अर्थव्यवस्था की होती है।’ जस्टिस बीआर गवई ने अपने अलग, लेकिन सहमति वाले फैसले में कहा कि राज्यों को एससी/एसटी वर्गों से क्रीमी लेयर को भी बाहर करना चाहिए।
The Supreme Court overturned the decision given in 2004 in the case of reservation for SC/ST tribes. The state government can create sub-categories among Scheduled Castes and Scheduled Tribes