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दून वासियो का ये सपना टूटने के कगार पर - Separato Spot Witness Times
देहरादून राज्य समाचार

दून वासियो का ये सपना टूटने के कगार पर

देहरादून मेट्रो रेल कारपोरेशन की महत्वाकांक्षी परियोजना नियो मेट्रो पर सरकारी मशीनरी के कदम ठिठक गए हैं। टेंडर आमंत्रित करने के बाद भी किसी कंपनी ने प्रतिभाग नहीं किया। ऋषिकेश-नीलकंठ रोपवे और हरिद्वार के लिए पॉड टैक्सी परियोजना में भी कंपनियों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। जानिए क्या है इन परियोजनाओं में देरी की वजह और क्यों कंपनियां नहीं दिखा रही हैं रुचि?

उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन (यूकेएमआरसी) की सबसे अहम परियोजना नियो मेट्रो पर सरकारी मशीनरी के कदम ठिठक गए हैं। दूसरी तरफ कारपोरेशन की जिन योजनाओं पर अधिकारियों ने कदम बढ़ाए भी थे, उन पर कंपनियों ने दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। क्योंकि मेट्रो रेल कारपोरेशन की ओर से टेंडर आमंत्रित किए जाने के बाद भी किसी ने प्रतिभाग नहीं किया।

जिस तरह दून शहर के लिए नियो मेट्रो अहम परियोजना है, उसी तरह निकटवर्ती शहर ऋषिकेश के लिए नीलकंठ रोपवे और हरिद्वार के लिए पॉड टैक्सी है। यह स्थिति इस ओर भी इशारे करती है कि कहीं उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन ने अति उत्साह में तो परियोजनाओं की डीपीआर तैयार नहीं करवा ली। क्योंकि निजी कंपनी बिना किसी ठोस आधार या घाटे के सौदे वाली परियोजनाओं में पैसा लगाने से दूर ही रहती है।

ऋषिकेश-नीलकंठ रोपवे परियोजना के लिए कारपोरेशन ने पहले मई 2023 में टेंडर मांगे थे। इसके बाद तिथि बढ़ाते हुए इसे मई 2024 किया। लेकिन कंपनियों ने यह कहते हुए दिलचस्पी नहीं दिखाई कि रोपवे परियोजना के लिए यात्री संख्या का जो आकलन किया गया है, वह वास्तविकता से कहीं अधिक है।
दूसरी तरफ कारपोरेशन की अधूरी तैयारी की कलई वन विभाग ने भी खोल दी। वन विभाग ने यह कहते हुए परियोजना को मंजूरी देने से इन्कार कर दिया कि यह बफर जोन है। अब स्वयं मेट्रो कारपोरेशन ने परियोजना को लेकर इंतजार की मुद्रा अपना ली है।
कुछ ऐसा ही हरिद्वार में प्रस्तावित पॉड टैक्सी परियोजना के साथ भी हुआ। अगस्त 2023 में संपन्न कराई गई टेंडर प्रक्रिया में किसी भी कंपनी ने प्रतिभाग नहीं किया। इसके बाद मेट्रो ने इस मोर्चे पर भी लगभग हथियार डाल दिए।
हरिद्वार में ही हरकी पैड़ी-चंडी देवी रोपवे परियोजना में जरूर तीन कंपनियों ने प्रतिभाग किया था, लेकिन मेट्रो ने खुद ही अपने कदम रोक लिए। बताया गया कि इसमें अभी कई जमीनी बातों का समाधान बाकी है।

 

नियो मेट्रो को आगे बढ़ाने के लिए भी गणित सुधारने की जरूरत
नियो मेट्रो की लागत 1852 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्तमान में 2300 करोड़ पार हो गई है। इतनी भारी भरकम लागत को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई।

मरता क्या न करता वाली स्थिति में राज्य के अधिकारियों ने भले ही परियोजना को जिंदा रखते हुए इसे पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (पीआइबी) के सुपुर्द कर दिया, लेकिन वह भी इस बजट और भविष्य की आमदनी के गणित को समझ नहीं पा रहे हैं।

राज्य की कंसल्टेंसी एजेंसी मैकेंजी भी खर्च और आमदनी को लेकर आशंका व्यक्त कर चुकी है। दूसरी तरफ मेट्रो के पूर्व प्रबंध निदेशक ने कहा था कि मेट्रो के संचालन के बाद सालभर में 670 करोड़ रुपये से अधिक की आय होगी। यानी एक दिन की आय करीब 1.84 करोड़ रुपये होगी।
इस तरह प्रति यात्री 40 रुपये के औसत किराये के साथ मेट्रो में रोजाना 4.6 लाख यात्री सफर करेंगे। इस तरह के जटिल गणित को देखकर ही राज्य के अधिकारी परियोजना को लेकर असमंजस की स्थिति में नजर आ रहे हैं।

सब कुछ ठीक होता तो क्यों विदा किए जाते अधिकारी
मेट्रो परियोजना के आरंभ से प्रबंध निदेशक की कुर्सी पर आसीन रहे जितेंद्र त्यागी विदाई ले चुके हैं। इन समेत पांच अफसरों की अब तक छुट्टी की जा चुकी है। वर्तमान में मेट्रो का जिम्मा निदेशक प्रोजेक्ट ब्रजेश कुमार मिश्रा को अस्थायी रूप में दिया गया है। वह भी अप्रैल को रिटायर हो जाएंगे। यह सब समीकरण और कारपोरेशन की परियोजना में कंपनियों का दिलचस्पी न दिखाना बताता है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

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