राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए बिल पर निर्णय के लिए समयसीमा निश्चित नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट,
Delhi, 20 November 2025,
सुप्रीम कोर्ट ने आज बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति और राज्यपाल के संवैधानिक अधिकार (प्रेसिडेंशियल रेफरेंस) के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, राज्य विधानसभाओं में पारित विधेयकों को मंजूरी देने के संबंध में राज्यपाल एवं राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती और न्यायपालिका भी उन्हें मान्य स्वीकृति नहीं दे सकती।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि यदि राज्यपाल को अनुच्छेद 200 (विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की राज्यपाल की शक्ति) के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना विधेयकों को रोकने की अनुमति दी जाती है तो यह संघवाद के हित के खिलाफ होगा। यह फैसला सुनाने वाली पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर भी शामिल थे।
पीठ ने कहा, ”हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को रोके रखने की असीमित शक्ति है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत उच्चतम न्यायालय की राय मांगे जाने पर पीठ ने ‘राष्ट्रपति के संदर्भ’ (प्रेसिडेंशियल रेफरेंस) के मामले में जवाब देते हुए कहा कि राज्यपालों के पास तीन विकल्प हैं – या तो वे विधेयकों को मंजूरी दें या पुनर्विचार के लिए भेजें या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजें। उसने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपालों के लिए समय-सीमा तय करना संविधान द्वारा प्रदत्त लचीलेपन के विरुद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मामले में राज्य के राज्यपाल द्वारा रोक कर रखे गए विधेयकों को भी अनुचित बताते हुए कहा कि यह संवैधानिक प्राधिकार के कार्यों को वस्तुतः अपने हाथ में लेने के समान है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आता।
