04 May 2025,
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 2025 को संबोधित किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता कानून, 2023 सभ्यतागत विरासत को मजबूत करने की दिशा में पहला कदम है। अब हमें इसमें गति लाने तथा इस कार्य प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मध्यस्थता कानून के तहत विवाद समाधान तंत्र का ग्रामीण क्षेत्रों तक प्रभावी तरीके से विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि पंचायतों को गांवों में विवादों में मध्यस्थता करने तथा उन्हें सुलझाने के लिए कानूनी रूप से सशक्त बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि गांवों में सामाजिक सद्भाव राष्ट्र को मजबूत बनाने की एक अनिवार्य शर्त है।
राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता न्याय प्रदान करने का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो भारत के संविधान – हमारे संस्थापक पाठ – के मूल में है। मध्यस्थता न केवल विचाराधीन विशिष्ट मामले में, बल्कि अन्य मामलों में भी न्याय प्रदान करने में तेज़ी ला सकती है, क्योंकि इससे अदालतों पर बड़ी संख्या में मुकदमों का बोझ कम हो जाता है। यह समग्र न्यायिक प्रणाली को और अधिक कुशल बना सकती है। इस प्रकार यह विकास के उन मार्गों को खोल सकती है जो अवरुद्ध हो सकते हैं। यह कारोबार में सुगमता और जीवन में सुगमता दोनों को बढ़ा सकता है। जब हम इसे इस तरह से देखते हैं, तो मध्यस्थता 2047 तक विकसित भारत की कल्पना को साकार करने का एक महत्वपूर्ण जरिया बन जाती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में न्यायिक तंत्र की एक लंबी और समृद्ध परंपरा है, जिसमें अदालत के बाहर समझौता अपवाद से अधिक एक आदर्श था। पंचायत की संस्था सौहार्दपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध है। पंचायत का प्रयास न केवल विवाद को हल करना था, बल्कि इसके बारे में पक्षों के बीच किसी भी कड़वाहट को दूर करना भी था। यह हमारे लिए सामाजिक सद्भाव का एक स्तंभ था। दुर्भाग्य से, औपनिवेशिक शासकों ने इस अनुकरणीय विरासत को नजरअंदाज कर दिया जब उन्होंने हम पर एक विदेशी कानूनी प्रणाली थोपी। जबकि नई प्रणाली में मध्यस्थता और अदालत के बाहर समाधान का प्रावधान था, और वैकल्पिक तंत्र की पुरानी परंपरा जारी रही, इसके लिए कोई संस्थागत ढांचा नहीं था। मध्यस्थता कानून, 2023 उस खामी को दूर करता है और इसमें कई प्रावधान हैं जो भारत में एक जीवंत और प्रभावी मध्यस्थता इकोसिस्टम की नींव रखेंगे।