Delhi, 10 July 2025,
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय चुनाव आयोग के बिहार मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, चुनाव आयोग के फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनाव आयोग का यह कदम भारतीय संविधान के तहत पूरी तरह वैध है। हालांकि कोर्ट ने सवाल भी उठाया और कहा ‘चुनाव से कुछ महीने पहले बिहार वोटर वेरिफिकेशन करना सही नहीं है। ये और पहले किया जाना चाहिए था। अब यह मामला सुनवाई के लिए 28 जुलाई तक उपयुक्त अदालत में सूचीबद्ध किया जाएगा।
आज केन्द्रीय चुनाव आयोग के बिहार मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) के निर्वाचन आयोग के फैसले के खिलाफ दायर 10 याचिकाओं पर दो जजों की पीठ न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ में सुनवाई हुई। 10 याचिकाओं में प्रमुख याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एन.जी.ओ.) है। निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी पेश हुए। द्विवेदी के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह भी निर्वाचन आयोग की पैरवी कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि बिहार की मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है।
शंकरनारायण ने कहा कि 24 जून को जारी मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के निर्देशानुसार जजों, पत्रकारों समेत अन्य का वैरिफिकेशन नहीं होगा। जबकि सभी मतदाता समान हैं।जस्टिस धूलिया ने कहा कि , आयोग के पता है कि किनका वैरिफिकेशन जरूरी नहीं है। शंकरनारायण ने कहा कि आधार से लिंक किया जा सकता था। आधार वैरिफिकेशन का एक सरल तरीका बन सकता था जो नहीं किया गया।
पीठ ने चुनाव आयोग से पूछा कि आखिर आधार कार्ड नागरिकता के प्रमाण के तौर पर स्वीकार्य क्यों नहीं है? जिसका जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
जिसपर जस्टिस धूलिया ने कहा, “लेकिन नागरिकता का मुद्दा भारत के चुनाव आयोग द्वारा नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय द्वारा तय किया जाना है।” चुनाव आयोग के वकील ने जवाब दिया, “हमारे पास अनुच्छेद 326 के तहत शक्तियां हैं।” पीठ ने पलटवार करते हुए कहा कि चुनाव आयोग को यह प्रक्रिया बहुत पहले शुरू कर देनी चाहिए थी।
याचिका कर्ता की ओर से अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि बिहार सरकार के सर्वेक्षण से पता चलता है कि बहुत कम लोगों के पास प्रमाण पत्र हैं। पासपोर्ट 2.5%, मैट्रिकुलेशन 14.71%, वन अधिकार प्रमाण पत्र बहुत कम संख्या में लोगों के पास हैं। निवास प्रमाण पत्र और ओबीसी प्रमाण पत्र भी बहुत कम संख्या में लोगों के पास हैं। मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में वांछित प्रमाण पत्रों में, जन्म प्रमाण पत्र शामिल नहीं है। आधार कार्ड शामिल नहीं है। मनरेगा कार्ड शामिल नहीं है। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि, चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। सिंघवी ने कहा कि यह पूरी तरह से नागरिकता जांच की प्रक्रिया है। जबकि जांच मतदाता की होनी है।
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि मतदाता सूची तैयार करना, उस पर पूरा नियंत्रण और पूरी निगरानी चुनाव आयोग के पास है। समय के साथ इसमें संशोधन की आवश्यकता है। एकमात्र प्रश्न शक्ति के प्रयोग के तरीके के बारे में हो सकता है। जस्टिस धूलिया ने कहा कि वे कह रहे हैं कि आप जो पुनरीक्षण कर रहे हैं, वह न तो संक्षिप्त संशोधन है और न ही गहन संशोधन। बल्कि एक विशेष गहन संशोधन है, जिसका उल्लेख पुस्तक में नहीं है और अब आप जिस पर सवाल उठा रहे हैं, वह नागरिकता है।
द्विवेदी ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। जिसका मतदाता से सीधा संबंध है। वह किसी मतदाता को मतदान से वंचित नहीं करता , जब तक कि आयोग को कानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए।जस्टिस धूलिया ने पूछा कि 20 साल से जो वोट दे रहे हैं, उनसे अब दस्तावेज मांगे जा रहे हैं?
द्विवेदी ने कहा कि यहां याचिका दाखिल करने वाले वोटर नहीं है। किसी मतदाता को आपत्ति नहीं है। एडीआर, पीयूसीएल वोटर नहीं हैं और ना ही राजनीतिक दल हैं।
द्विवेदी ने कहा कि इनमें से कोई भी बिहार का वोटर नहीं है। इसका आधार क्या है? ये कुछ लोग हैं, जो लेख लिखते हैं और फिर याचिका दायर करने आगे आते हैं।
पीठ ने कहा, चुनाव आयोग द्वारा किया जा रहा बिहार वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन संविधान द्वारा वैध है। इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है। मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण पूर्व में 2003 में हुआ था, और अब 2024 में दो दशक बाद प्रक्रिया की जा रही है।
चुनाव आयोग ने पीठ के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा, बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2024 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले यह प्रक्रिया शुरू की गई है ताकि नए मतदाताओं को जोड़ा जा सके, पुराने, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं को हटाया जा सके और मतदाता सूची की विश्वसनीयता और पारदर्शिता बनी रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद चुनाव आयोग के मुताबिक मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेजों की सूची में 11 दस्तावेज शामिल हैं। जोकि, संपूर्ण नहीं है। हमारी राय में, यह न्याय के हित में होगा यदि आधार कार्ड, ईपीआईसी कार्ड(मतदाता पहचान पत्र) और राशन कार्ड को भी इसमें शामिल किया जाए। यह चुनाव आयोग पर निर्भर है कि वह दस्तावेज लेना चाहता है या नहीं। यदि वह दस्तावेज नहीं लेता है, तो उसे इसके लिए कारण बताना होगा और इससे याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट होना होगा।
न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि मामले की सुनवाई जरूरी है। उन्होंने आदेश दिया कि, इस मामले को 28 जुलाई तक उपयुक्त अदालत में सूचीबद्ध किया जाए। उन्होंने कहा कि 21 जुलाई तक या उससे पहले प्रतिवाद दायर किया जाए और 28 जुलाई से पहले प्रत्युत्तर दिया जाए।