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वक्फ कानून को लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार का पक्ष रखा। - Separato Spot Witness Times
न्यायालय राष्ट्रीय समाचार

वक्फ कानून को लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार का पक्ष रखा।

Delhi, 21 May 2025,

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के विरोध में और पक्ष में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। बीते दिन 20 मई को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, के विरोध में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर से दलीलें पेश की थी। आज बुधवार को वक्फ कानून को लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर व्यापक स्तर पर चर्चा और परामर्श किया गया है। इसके बाद ही वक्फ कानून बना है। तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि, वक्फ कानून के विरोध करने वाले याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि इस विषय पर 97 लाख से अधिक लोगों से सुझाव प्राप्त हुए, और कई स्तरों पर मीटिंग्स आयोजित की गईं जिनमें इन संशोधनों पर विस्तार से चर्चा हुई है। 25 वक्फ बोर्डों से राय ली गई, जिनमें से कई ने खुद आकर अपनी बातें रखीं. इसके अलावा राज्य सरकारों से भी सलाह-मशविरा किया गया है ।तुषार मेहता ने बताया कि “संशोधन के हर क्लॉज पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। कुछ सुझावों को स्वीकार किया गया, जबकि कुछ को नहीं माना गया।

सीजेआई बीआर गवई ने सवाल किया कि, इस मामले में सरकार अपना दावा खुद तय करेगी? इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, “यह बात सही है कि सरकार खुद के दावे की पुष्टि नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि विपक्षी याचिकाकर्ताओं की आपत्ति यह थी कि कलेक्टर वक्फ मामले में न्यायाधीश होंगे। इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि राजस्व अधिकारी केवल रिकॉर्ड के लिए निर्णय लेते हैं, टाइटल का अंतिम निर्धारण नहीं करते।

कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो यह देखे कि वक्फ घोषित की गई संपत्ति को वक्फ संपत्ति माना जा रहा है या नहीं?

इसपर सीजेआई श ने कहा कि क्या 1923 के कानून में पंजीकरण का भी प्रावधान था? आपको बता दें कि इसे लेकर विपक्षी याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि पंजीकरण 1954 से हुआ था, 1923 से नहीं।

तुषार मेहता ने इसपर कहा कि मैं सीधे धारा से पढ़ रहा हूं। एक अभियान चल रहा है कि 100 साल पुरानी संपत्ति हम कागज़ कहां से लाएंगे। मुझे बताइए कि कागज़ कभी ज़रूरी नहीं थे। ⁠यह एक कहानी बनाई जा रही है. अगर आप कहते हैं कि वक्फ 100 साल से पहले बना था तो आप सिर्फ़ पिछले 5 सालों के ही दस्तावेज़ पेश करेंगे।यह महज़ औपचारिकता नहीं थी। अधिनियम के साथ एक पवित्रता जुड़ी हुई थी.1923 अधिनियम कहता है कि अगर आपके पास दस्तावेज़ हैं तो आप पेश करें। अन्यथा आप मूल के बारे में जो भी जानते हैं, पेश करें।

तुषार मेहता ने दलील दी कि, अगर वक्फ संपत्ति के संबंध में निजी पक्ष के बीच कोई विवाद है तो यह सक्षम अदालत के फैसले द्वारा शासित होगा। ⁠हम वक्फ बाय यूजर से निपट रहे हैं. शुरुआती बिल में कहा गया था कि कलेक्टर फैसला लेंगे। आपत्ति यह थी कि कलेक्टर अपने मामले में खुद जज होंगे। इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए। सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि इसका मतलब है कि कलेक्टर सिर्फ पेपर इंट्री होंगे। तुषार मेहता कोर्ट को बताया कि हां हमने हलफनामे में भी कहा है कि अगर कोई सरकारी जमीन है तो सरकार मुकदमा दाखिल करेगी।

 

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