नई दिल्ली , सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का अपमान या अपमान करना, बिना उसकी जाति, जनजाति या अस्पृश्यता की अवधारणा के बारे में संकेत दिए बिना, अनुसूचित जाति/ जनजाति, अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के कड़े प्रावधानों में अपराध नहीं होगा।
जस्टिस जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने यह फैसला ऑनलाइन मलयालम समाचार चैनल के संपादक शाजन सकारिया को अंतरिम जमानत देते हुए दिया। सकारिया को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदाय के सीपीएम विधायक पी वी श्रीनिजन को ‘माफिया डॉन’ कहने पर अनुसूचित जाति / जनजाति अधिनियम में गिरफ्तार किया गया था। साथ ही उन्हें ट्रायल कोर्ट और केरल हाई कोर्ट ने पूर्व गिरफ्तारी जमानत से वंचित कर दिया था।
पीठ ने कहा कि अपमान करने का इरादा उस व्यापक संदर्भ में समझा जाना चाहिए जिसमें हाशिए के समूहों के अपमान की अवधारणा को विभिन्न विद्वानों ने समझा है। पीठ ने कहा कि यह सामान्य अपमान या डराना नहीं है जो ‘अपमान’ के बराबर होगा, जिसे 1989 अधिनियम में दंडनीय बनाया जाना चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने माफिया डॉन’ संदर्भ का उल्लेख करते हुए, कहा कि अपमानजनक आचरण और किए गए अपमानजनक बयानों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, ज्यादा से ज्यादा यह कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता सकारिया ने प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की धारा 500 में दंडनीय मानहानि का अपराध किया है। शिकायतकर्ता के लिए मानहानि का मुकदमा दर्ज करने का विकल्प है।
पीड़ित शिकायतकर्ता केवल इस आधार पर 1989 के अधिनियम के प्रावधानों का आह्वान नहीं कर सकता था कि वह अनुसूचित जाति का सदस्य है, और अधिक तो, जब वीडियो के ट्रांसक्रिप्ट और शिकायत के एक प्रथम दृष्टया संयुक्त पढ़ने से यह प्रकट नहीं होता है कि अपीलकर्ता के कार्य शिकायतकर्ता की जाति पहचान से प्रेरित थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/ जनजाति अधिनियम में अग्रिम जमानत देने पर रोक तभी मान्य बताया जब पहली नजर में केस बनता हो। जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने यूट्यूब एडिटर को जमानत देते हुए कहा कि केस के आधार पर ही जमानत पर निर्णय होगा। इससे कानून के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा।
अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम मामले में केस तब होता है जब अनुसूचित जाति / जनजाति समुदाय के लोगों को जातिसूचक शब्द से संबोधित किया जाता है या फिर ऐसे लोगों को फिजिकल असॉल्ट करना या उनके साथ ऐसी हरकत करना जो ह्मयूनिटी के खिलाफ हो। इस ऐक्ट में दर्ज केस में अग्रिम जमानत नहीं मिलती और यह गैर जमानती अपराध है। लेकिन समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित मामले में कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं जिसमें कानून की व्याख्या हुई है।
Important decision of Supreme Court in case related to Scheduled Caste/ScheduledTribe Prevention Act