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सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है। हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते, विविधता में भी एकता है:आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत  - Separato Spot Witness Times
राजनीतिक राष्ट्रीय समाचार

सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है। हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते, विविधता में भी एकता है:आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत 

Delhi , 27 August 2025,

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विज्ञान भवन में आयोजित “आरएसएस की 100 वर्ष यात्रा: नए क्षितिज” विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम की विषयवस्तु भौगोलिक नहीं है, बल्कि भारत माता के प्रति समर्पण और पूर्वजों की परंपरा है जो सभी के लिए समान है। उन्होंने कहा, ‘हमारा डीएनए भी एक है। सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है। हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते, विविधता में भी एकता है। विविधता, एकता का ही परिणाम है। भागवत का कहना है कि स्वाभाविक धर्म समन्वय है संघर्ष नहीं है. इससे कम से कम हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म में तो समन्वय दिखाई ही देगा। राष्ट्रवादी मुसलमानों में भी हिंदू धर्म के साथ समन्वयव की उम्मीद जगेगी।संघ का उद्देश्य किसी को गिराना नहीं है, न हम किसी के विरोध में है। उन्होंने कहा, ‘हिंदू राष्ट्र शब्द का सत्ता से कोई मतलब नहीं है। हिंदू राष्ट्र जब अपनी प्रखरता में रहा, तो उसमें हर पंथ-संप्रदाय को आगे बढ़ने का मौका मिला। यह सत्ता या शासन का धर्म नहीं है। यहां सबके लिए न्याय है, किसी के भी बीच भेदभाव नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘विविधता में भी एकता है और विविधता एकता का ही नतीजा है। भागवत ने हिंदुओं को भूगोल और परंपराओं की व्यापक रूपरेखा में परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जानते हैं, लेकिन खुद को हिंदू नहीं मानते जबकि कुछ अन्य इसे नहीं जानते। भागवत ने कहा, ‘पूरे समाज को हमें संगठित करना है। संघ के मन में एक बात है कि अगर यह लिखा जाता है कि संघ के कारण देश बचा तो ऐसा नहीं है। हम ऐसा नहीं करना चाहते। रावण से दुनिया त्रस्त थी। राम नहीं होते तो क्या होता और शिवाजी नहीं होते तो क्या होता। इसलिए दूसरों को ठेका देना सही नहीं है। देश हम सब की जि

मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका और उद्देश्यों का जिक्र करते हुए ने कहा कि, भारत आज़ादी के 75 वर्षों में वह वांछित दर्जा हासिल नहीं कर सका जो उसे मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि आरएसएस का उद्देश्य देश को विश्वगुरु बनाना है और दुनिया में भारत के योगदान का समय आ गया है। उन्होंने देश के उत्थान के लिए सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर दिया। भागवत ने कहा, ‘अगर हमें देश का उत्थान करना है तो यह किसी एक पर काम छोड़ देने से नहीं होगा। हर किसी की अपनी भूमिका होगी।’ उन्होंने यह भी कहा कि नेताओं, सरकारों और राजनीतिक दलों की भूमिका इस प्रक्रिया में सहायता करना है।

संघ प्रमुख ने कहा कि मुख्य कारण समाज का परिवर्तन और उसकी क्रमिक प्रगति होगी। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीयों ने कभी लोगों के बीच भेदभाव नहीं किया, क्योंकि वे यह समझते थे कि सभी और विश्व एक ही दिव्यता से बंधे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द का प्रयोग बाहरी लोग भारतीयों के लिए करते थे। उन्होंने कहा कि हिंदू अपने मार्ग पर चलने और दूसरों का सम्मान करने में विश्वास रखते हैं। वे किसी मुद्दे पर लड़ने में नहीं, बल्कि समन्वय में विश्वास रखते हैं।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश भी जाएगा कि भारत का राष्ट्रवाद अधिनायकवादी नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और समावेशी है।

 

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