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रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार डिपोर्ट करने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार। - Separato Spot Witness Times
न्यायालय राष्ट्रीय समाचार

रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार डिपोर्ट करने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार।

Delhi , 17 May 2025,

भारत से रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार डिपोर्ट करने पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा बिना मजबूत साक्ष्यों के आप रोजाना एक नई कहानी लेकर चले आते हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार डिपोर्ट करने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। इस याचिका पर भी 31 जुलाई को 3 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों (जिनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और गंभीर स्वास्थ्य स्थिति वाले लोग शामिल हैं) को भारत सरकार द्वारा जबरन म्यांमार डिपोर्ट करने के आरोप वाली याचिका पर सुनवाई की है। इस दौरान याचिका कर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि हमें म्यांमार से एक फ़ोन आया था। यह म्यांमार के तटों से टेप रिकॉर्डिंग है। सरकार सत्यापित कर सकती है, कोई समस्या नहीं। यह हमारा रिश्तेदार है जिसे निर्वासित किया गया था। उन्होंने हाथ बांध दिए हैं। उन्हें अंडमान द्वीप से जहाज द्वारा यहां लाया गया और समुद्र में छोड़ दिया गया। इसपर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि, किसने सत्यापित किया? जस्टिस कांत ने कहा कि इस देश में साक्ष्य का कानून बहुत प्रसिद्ध है। कृपया हमें बताएं कि यह जानकारी कहां से आई है और किसने कहा कि मुझे इसके बारे में व्यक्तिगत जानकारी है। जब तक कोई व्यक्ति वहां खड़ा होकर देख नहीं रहा हो, तब तक धरती पर आपके कथन की पुष्टि कौन कर सकता है? जब तक कि इस सज्जन के पास सैटेलाइट रिकॉर्डिंग न हो। सुप्रीम कोर्ट ने वकील कॉलिन गोंजाल्विस को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने का समय दिया।

जस्टिस कांत ने अपने आदेश में कहा, अंतरिम निर्देशों के लिए दायर आवेदन पहले ही अस्वीकार कर दिया गया था। मुख्य मामला 31 जुलाई को 3 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। इसमें 8 मई को उपर्युक्त आदेश पारित किया गया। जस्टिस कांत ने कहा , याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए अस्पष्ट बयानों के समर्थन में कोई तथ्य नहीं है। जब तक आरोपों का समर्थन कुछ प्रथम दृष्टया सामग्री से नहीं किया जाता, तब तक हमारे लिए बड़ी पीठ द्वारा पारित आदेश पर विचार करना मुश्किल है। इन मामलों की भी 31 जुलाई को उन मामलों के साथ तीन जजों की बेंच के समक्ष सुनवाई की जाएगी। हम 3 न्यायाधीशों की पीठ में बैठकर ही यूएन रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी करेंगे।

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