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सुप्रीम कोर्ट में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मामले पर सुनवाई - Separato Spot Witness Times
राष्ट्रीय समाचार

सुप्रीम कोर्ट में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मामले पर सुनवाई

Delhi 29 August 2025,

सुप्रीम कोर्ट में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मामले पर पांचवें दिन सुनवाई हुई। इस दौरान सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें पेश की। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश दिया था। जिऐसा ऐमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए 90 दिन की समयसीमा तय की थी। इसी फैसले को लेकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट में यह रेफरेंस दाखिल किया है।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि , प्रेजिडेंशियल रेफरेंस में जानकारी मांगी गई , क्या किसी राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई रिट याचिका पर विचार किया जा सकता है? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्य सरकारें ऐसी इकाइयां नहीं हैं, जिनके पास मौलिक अधिकार हों. इसलिए, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए लागू अनुच्छेद 32 राज्य सरकार द्वारा लागू नहीं किया जा सकता।क्षउन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों का निपटारा संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत होना चाहिए। तुषार मेहता ने यह भी कहा कि राज्य सरकार यह दावा करके भी ऐसी रिट याचिका दायर नहीं कर सकती कि वह जनता के अधिकारों का संरक्षक है। तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के पद और कार्यों को देखते हुए उनके खिलाफ ‘Writ of Mandamus’ की मांग नहीं की जा सकती। इस पर चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने पूछा कि राज्यपाल को केंद्र सरकार का प्रतिनिधि क्यों नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता कहा कि राज्यपाल राज्यों और केंद्र के बीच एक महत्वपूर्ण पुल का काम करते हैं। राज्यपाल राज्य सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करते हैं। वे राष्ट्रपति के आज्ञापत्र पर नियुक्त होते हैं। उन्होंने कहा कि संवैधानिक योजना के मुताबिक, अनुच्छेद 154 कहता है कि राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है। कि अनुच्छेद 131 के मकसद से वे भारत संघ के समान नहीं हैं। इसलिए राज्यपाल के साथ विवाद को भी अनुच्छेद 131 के तहत नहीं लाया जा सकता।

आंध्र प्रदेश सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि वे इस मुद्दे पर अपनी सरकार से निर्देश लेंगे‌। क्योंकि उनकी राज्य सरकार ने अनुच्छेद 32 के तहत कई याचिकाएं दायर कर रखी हैं, जो लंबित हैं। बेंच ने पहले ही उन राज्यों की दलीलें सुन ली हैं, जो इस का विरोध कर रहे हैं। वहीं, तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी दिलचस्प दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल और सरकार ‘एक म्यान में दो तलवारों’ की तरह नहीं रह सकते। दोनों को सहयोगी की तरह ही रहना होगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का काम सिर्फ एक मार्गदर्शक का है, और वह राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को पलट नहीं सकते।

 

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